जीवन की राहों में कई बार कदम कुछ ऐसी राह पकड़ लेते हैं जिसकी कोई मंजिल नहीं होती या यूं कहो कि मंजिल सपना बन जाती है और वो राह स्वप्निल ।
स्वप्निल राह
जीवन की सच्चाई से
अनभिज्ञ वो
बढ़ती जा रही थी
स्वप्निल रास्तों के गांव
लेकर विचारों की छांव
कदम पर आई ठोकर को
विश्वास के पत्ते से सहलाती
बस बढ़ती जा रही थी
बेखौफ वो जज़्बाती
मंजिल से दूरी
लगती अब कम थी
आँखें भी खुशी से
हो गई नम थी
पर.....
एक पल में मानो
सब कुछ बिखर गया
तिनका-तिनका कर घरौंदा
अब तो टूट गया
उसकी ये राह
सिर्फ स्वप्निल थी
जीवन की सच्चाई नहीं
मन की भटकन थी
ये जानती है वो
ये जानती है वो
कि स्वप्निल राहों की
दिशाएं नहीं होती
गर न होता
ये नाजुक मन
न होते अरमान
न ही आशाएं होती
न होते अरमान
न ही आशाएं होती ...............
सु..मन
mere humnaam raste kisi ko pareshan karenge ....aisa socha to nahi tha..par aap ki nazm to kehti hai ki koi hua hai .....badhiya prastuti..
जवाब देंहटाएंस्वपनिल राहें....भावपूर्ण रचना. बहुत बढ़िया.
जवाब देंहटाएंbahut Achcha ek katu satya...
जवाब देंहटाएंhttp://dilkikalam-dileep.blogspot.com/
स्वप्निल राहों की दिशाएँ नही होती
जवाब देंहटाएंदिशाहीन स्वप्नो को महज़ एक दिशा देना है
मंजिल पा ही लेंगे
बेहतरीन रचना
nice
जवाब देंहटाएंइंसान को स्वप्न अक्सर धोखा दे जाते हैं ! अच्छी रचना !
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण रचना ,सच है जब मन ही भटक जाए तो शायद सही ग़लत का अंतर समझ में नहीं आता और मनुष्य सपने को सच समझ लेता है,जिस का टूटना उसे दुखी कर जाता है
जवाब देंहटाएंस्वप्निल राहों की दिशाएं नहीं होतीं.....बहुत अलग सी सोच....सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंbahut khubsurti se likha hai aapne..
जवाब देंहटाएंpehli baar aapke blog ki taraf ka rookh kiya hai..
aapko padhkar achha laga..
aksar aata rahoonga.....
regards..
http://i555.blogspot.com/
जीवन की तल्ख़ हकीकत से टकराकर सपने अक्सर टूट जाते हैं...बहुत भावपूर्ण रचना है आपकी...बधाई.
जवाब देंहटाएंआपके ब्लॉग पर पहली बार ही आना हुआ है, इस की साज सज्जा से बहुत प्रभावित हुआ हूँ..आपका चित्र चयन भी लाजवाब है...
नीरज
ये नाजुक मन
जवाब देंहटाएंन होते अरमान
न ही आशाएं होती
न होते अरमान
न ही आशाएं होती ............
bahut khub
shekhar kumawat
http://kavyawani.blogspot.com/
स्वप्निल राहों की...दिशाएं नहीं होती
जवाब देंहटाएंगर न होता...ये नाजुक मन...न होते अरमान
न ही आशाएं होती...न होते अरमान.. न ही आशाएं होती .
लेखन की इस बुलंदी के लिये बहुत बहुत शुभकामनाएं
swapnil raahon me hakikat ke phul khilte hain, aur jo na ho usse anubhaw milta hai....
जवाब देंहटाएंवाह !.....अछे भाव लिए हुए ....सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंhttp://athaah.blogspot.com/
सुन्दर भाव इन स्वप्निल पंक्तियों के ..बहुत खूब ..शुक्रिया सुमन जी
जवाब देंहटाएंअगर स्वप्न न हों ... स्वप्निल राहे न हों तो जीवन आसान नही होगा ... ये स्वप्न ही तो उमंग बरते हैं जीवन में ...
जवाब देंहटाएंकल्पना और परिक्ल्पना के इस जीवन में इन्सान कई घरोंदे बनत है! कुछ टूट जाते हैम, कुछ बिखर जाते हैं ! यही जीवन है !
जवाब देंहटाएंSundar bhavnaon kee prabhavshalee abhivyakti.
जवाब देंहटाएंsundar rachna
जवाब देंहटाएंsuman ji bhaav bade ghehre hai. achchi post lagi.
जवाब देंहटाएंsundar ati sundar ..
जवाब देंहटाएंZindagee aise rahon pe chalnewalon ko aksar jhakjhor deti hai..
जवाब देंहटाएंभाव संगुम्फन प्रशंसनीय ।
जवाब देंहटाएंUtkrisht!
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट भाव....अच्छी प्रस्तुति
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डॉ.चन्द्रकुमार जैन
भावपूर्ण रचना. बहुत बढ़िया.
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