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मंगलवार, 15 अक्तूबर 2013

बदला सा सब ..












ना फिज़ा बदली ना शहर बदला 
इस जगह से मेरा ठिकाना बदला 

दो घड़ी रुक ऐ वक्त तू मेरे लिए 
मेरे हिस्से का तेरा पैमाना बदला 

शब ना हो उदास इस कदर तन्हा 
वही है जाम बस मयखाना बदला 

लिखने का सबब नहीं कोई 'मन' 
मेरे लफ्ज़ो अब आशियाना बदला !!



सु..मन 



24 टिप्‍पणियां:

  1. वाह ! हर शेर लाजवाब है ! बहुत सुंदर !

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  2. बहुत ही खुबसूरत और प्यारी रचना..... भावो का सुन्दर समायोजन......

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  3. मेरी रचना को स्थान देने के लिए धन्यवाद

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