कुछ क़तरे हैं ये जिन्दगी के.....जो जाने अनजाने.....बरबस ही टपकते रहते हैं.....मेरे मन के आँगन में......
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मंगलवार, 15 अक्तूबर 2013
बदला सा सब ..
ना फिज़ा बदली ना शहर बदला इस जगह से मेरा ठिकाना बदला दो घड़ी रुक ऐ वक्त तू मेरे लिए मेरे हिस्से का तेरा पैमाना बदला शब ना हो उदास इस कदर तन्हा वही है जाम बस मयखाना बदला लिखने का सबब नहीं कोई 'मन' मेरे लफ्ज़ो अब आशियाना बदला !! सु..मन
Bahut Umda...
जवाब देंहटाएंशुक्रिया तश्तरी जी
हटाएंबहुत सुन्दर :-)
जवाब देंहटाएंशुक्रिया रीना :)
हटाएंबहुत खूब ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद संगीता जी
हटाएंबहुत सुन्दर.
जवाब देंहटाएंशुक्रिया आपका
हटाएंUmda sher hain sabhi ...
जवाब देंहटाएंपसंद करने के लिए शुक्रिया दिगम्बर जी
हटाएंबहुत सुंदर .
जवाब देंहटाएंwahh sundar rachna ... badhayi :)
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंlatest post महिषासुर बध (भाग २ )
धन्यवाद
हटाएंवाह ! हर शेर लाजवाब है ! बहुत सुंदर !
जवाब देंहटाएंशुक्रिया साधना जी
हटाएंवाह, बहुत खूब
जवाब देंहटाएंप्रवीण जी आभार
हटाएंबहुत ही खुबसूरत और प्यारी रचना..... भावो का सुन्दर समायोजन......
जवाब देंहटाएंधन्यवाद शास्त्री जी
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को स्थान देने के लिए धन्यवाद
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
जवाब देंहटाएंpyari rachna Suman
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