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शुक्रवार, 30 जुलाई 2021

शब्द से ख़ामोशी तक – अनकहा मन का (२१)

 

                            
                        
                            धरा जब श्वास छोड़ती .. तभी गगन साँस भरता और अदृश्य कण प्रवाहित होते , इस ओर से उस ओर । गगन के हृदय में संग्रहित वही श्वास बादल बनकर मौन की यात्रा करते- करते, एक दिन बारिश बनकर शांत हो जाते और पुन: धरा की श्वास में मिल जाते हैं |

ये एक अंतर्यात्रा है । निर्वात यात्रा ।

सु-मन 

12 टिप्‍पणियां:

  1. ओह बहुत ही गहन...प्रकृति सचमुच ऐसी होती है, अनुभूति अगर हमारे अंदर गहरी है तब यकीन मानिये कि प्रकृति भी हमारी उतनी ही गहरी होगी...बहुत अच्छी पंक्तियां हैं।

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  2. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(३१-०७-२०२१) को
    'नभ तेरे हिय की जाने कौन'(चर्चा अंक- ४१४२)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  3. धरा और गगन के अलौकिक अनुबंधन को व्यक्त करती बहुत ही सुन्दर रचना।

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  4. निर्वात यात्रा !
    आध्यात्मिकता का आभास देती गहन अभिव्यक्ति।

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  5. मन्त्र मुग्ध करती रचना - - साधुवाद आदरणीया।

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  6. मन के वैरागी होने पर अंतर्यात्रा शुरू होती है। खामोशी से....

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  7. Jude hmare sath apni kavita ko online profile bnake logo ke beech share kre
    Pub Dials aur agr aap book publish krana chahte hai aaj hi hmare publishing consultant se baat krein Online Book Publishers

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