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बुधवार, 3 फ़रवरी 2021

शब्द से ख़ामोशी तक – अनकहा मन का (२०)


हम अपने अधिकांश जीवन में अनभिज्ञ बने रहते हैं। हमेशा उस वस्तु या इंसान पर ध्यान केंद्रित करते हैं जो हमारी प्रगति, हमारे मन की शांति में बाधित महसूस होते है और खुद को दुखी करते हैं उस वस्तु / इंसान के कारण। दूसरों को दोषी ठहराते हैं अपने दुख के लिए । वो दुख जो हमारा अपना बनाया है । *बुद्ध* कितनी सरल और स्वाभाविक बात बोलते हैं कोई कुछ भी बोले , कोई वस्तु मन पर कितनी चोट करे बस तुम उसको ग्रहण(आत्मसात) मत करो । जब कुछ तुम्हारा नहीं होगा तो दुख भी ना होगा । बस खुद को पूर्ण रूप से अपना लो । जितना ध्यान बाहर(वस्तु/ इंसान) की तरफ है उतना अंदर की तरफ लगाओ और भीतर आत्मसात कर इस अनभिज्ञता से बाहर आ जाओ ।
मन ! भीतर की यात्रा सफल हो .... |

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