मनुष्य अपने कृत्य का उत्तरदायी खुद होता है । दूसरे के प्रत्युत्तर से मिलने वाला क्षणिक सकून सही मायने छलावा है । दूसरे से मिला सुख-दुख, प्यार-माफी तब तक कोई मायने नहीं रखते जब तक मनुष्य खुद अपने कृत्य के लिए सजग ना हो । आत्मग्लानि से भरा मन कभी-कभी आत्मबोध तक ले जाता है ।सु-मन
पिछली कड़ी : शब्द से ख़ामोशी तक – अनकहा मन का (२३)
बहुत सटीक एवं लाजवाब ।
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 4 मई 2022 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
अथ स्वागतम् शुभ स्वागतम्
बहुत सुन्दर .....
जवाब देंहटाएंसच है सच्चा सुकून तो अपने अच्छे किये कर्म से ही मिल सकता है
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया
ठीक कहा आपने
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