जिसमें
सूरज ने उड़ेल दिया
अपना
सम्पूर्ण प्रेम
और
धरा
उस
प्रेम में तप कर
निर्वाक
जलाती रही खुद को
आँख
मिचे |
ये
एक गरम दिन था
जिसमें
नदी खुद पीती रही
अपना
पानी
किनारे
की रेत
प्रेम
की प्यास में जलकर
अतृप्त
शिलाओं के बाहुपाश में
देखते
रही इकहरी होती नदी को
टकटकी
लगाए |
ये
एक गरम दिन था
जिसमें
हरे वृक्ष पड़े थे
औंधे
मुँह
मक्की
बीजे खलिहानों में
अंकुर
ले रहा था
नवजीवन
की अनमोल साँसें
पवन
चक्की मांग रही थी
हिमालय
से अपने हिस्से की
कुछ
हवा |
ये
एक गरम दिन था
जिसमें
जीवन था..अनगिनत
साँसें थी !!
सु..मन
ये एक गरम दिन था
जवाब देंहटाएंजिसमें जीवन था..अनगिनत साँसें थी ......बहुत ही सुन्दर पंक्तियाँ
शुक्रिया अपर्णा जी
हटाएंब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन मिलिए १६ वीं लोकसभा की नई अध्यक्षा से - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंआभार ब्लॉग बुलेटिन का | साथ बना रहे |
हटाएंउस दिन में सब कुछ था....... गहरे भाव
जवाब देंहटाएंधन्यवाद राहुल जी
हटाएंसच ये गर्म दिन था...और तुमने लिखी नर्म सी कविता !!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
अनु
इस गर्म दिन के नर्म भावों को पढ़ने के लिए शुक्रिया आपका |
हटाएंये एक गरम दिन था जहां फूट रहे थे सृजन के अंकुर।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया आशा जी
हटाएंmujhe ye din bahut pasand aaya . zindagi kee maang yahi hoti hia ki aise din mile !
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया विजय जी | बहुत दिनों बाद आपकी दस्तक हुई ..बहुत अच्छा लगा |
हटाएंकल 08/जून/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !
शुक्रिया यश :)
हटाएंआभार शास्त्री जी | ब्लॉग जगत में आपका योगदान सराहनीय है |
जवाब देंहटाएंNice one ma"m :)
जवाब देंहटाएंJust started my blog focusing on Hindi Stories and Hindi Poems based on present day human life.....
Fire on Water
please , have a look :)
सुबह सुबह मन प्रसन्न हुआ रचना पढ़कर !
जवाब देंहटाएंसुन्दर कविता है...समय की मांग के मुताबिक.
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत रचना .... बधाई !!
जवाब देंहटाएंबहुत खूब...
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंक्या बात है !