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शुक्रवार, 30 जुलाई 2021

शब्द से ख़ामोशी तक – अनकहा मन का (२१)

 

                            
                        
                            धरा जब श्वास छोड़ती .. तभी गगन साँस भरता और अदृश्य कण प्रवाहित होते , इस ओर से उस ओर । गगन के हृदय में संग्रहित वही श्वास बादल बनकर मौन की यात्रा करते- करते, एक दिन बारिश बनकर शांत हो जाते और पुन: धरा की श्वास में मिल जाते हैं |

ये एक अंतर्यात्रा है । निर्वात यात्रा ।

सु-मन 
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