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मंगलवार, 28 जून 2022

शब्द से ख़ामोशी तक – अनकहा मन का (२५)

 


                                  ये जीवन कढ़ाई में उबलती घनी मलाई की तरह है जिसमें हमारे सदगुण व अवगुण ( विकार, विचार, अच्छाई, बुराई, मोह, तृष्णा, विरक्ति) सब एक साथ होते हैं जो उस मलाई की मिठास को प्रतिबंधित किये रखते हैं अपने-अपने स्वरूप के कारण । लेकिन जैसे-जैसे कढ़ने पर एक दूसरे से दूर हटने लगते हैं मिठास (सदगुण) घी के रूप में अपने आप अलग होकर सुगंध के साथ ऊपर आने लगती है और अंत में अवगुणों का कड़वापन सूखे पेड़ा बन निष्क्रिय हो जाता है । इसी तरह जीवन की मिठास पाने के लिये हमें तपना पड़ता है अवगुणों का दमन करना पड़ता है ।

सु-मन 

शनिवार, 23 अप्रैल 2022

शब्द से ख़ामोशी तक – अनकहा मन का (२४)

 



                            मनुष्य अपने कृत्य का उत्तरदायी खुद होता है । दूसरे के प्रत्युत्तर से मिलने वाला क्षणिक सकून सही मायने छलावा है । दूसरे से मिला सुख-दुख, प्यार-माफी तब तक कोई मायने नहीं रखते जब तक मनुष्य खुद अपने कृत्य के लिए सजग ना हो । आत्मग्लानि से भरा मन कभी-कभी आत्मबोध तक ले जाता है ।

सु-मन 

पिछली कड़ी : शब्द से ख़ामोशी तक – अनकहा मन का (२३)

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