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सोमवार, 14 अगस्त 2017

इन्तज़ार का सम्मोहन



और तुम फिर
हो जाते हो मुझसे दूर
अकारण , निरुद्देश्य ...
ये जानकर भी
कि आआगे तुम पुनः
मेरे ही पास 

स्वैच्छिक , समर्पित ...
सच मानो -
हर बार की तरह
न पूछूँगी कोई प्रश्न
न ही तुम देना कोई अर्जियां
कि तुम्हारा पलायन कर
फिर लौट आना
मेरे इन्तज़ार के सम्मोहन का साक्षी है !!


सु-मन

8 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (15-08-2017) को "भारत को करता हूँ शत्-शत् नमन" चर्चामंच 2697 पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    स्वतन्त्रता दिवस और श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं
  2. इंतज़ार का सम्मोहन खैंच ही लता है ... शायद यही प्रेम है

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह बहुत सुंदर रचना . इंतज़ार का सम्मोहन किसी को भी पास ले आता है और ज़ब कोई सवाल न पूछ रहा तो लौटना अनिवार्य सा हो जाता है .

    जवाब देंहटाएं

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