बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं…....... इस अवसर पर मेरी एक पुरानी कविता डाल रही हूँ ।आशा करती हूँ आप सबको पसन्द आयेगी.....
शाम ढल आई
मेघ की गहराई
नीर बन आई
आसमा की तन्हाई
न किसे भी नज़र आई ;
रातभर ऐसे बरसे मेघ
सींचा हर कोना व खेत
न जाना कोई ये भेद
किसने खेला है ये खेल ;
प्रभात में खिला उजला रूप
धुंध से निकली किरणों मे धूप
खेत में महका बसंत भरपूर
अम्बर आसमानी दिखा मगरूर ;
पंछियों से उड़े मतवाले पतंग
डोर को थामे मन मस्त मलंग
मुग्ध हूँ देख “प्रकृति के रंग”
कैसे भीगी रात की तरंग
ले आई है रश्मि की उमंग !!
........................................ सु..मन
खेत में महका बसंत भरपूर ....
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ......
बहुत ही मस्त अभिव्यक्ति है।
जवाब देंहटाएंसन्देश और पीड़ा दोनों ही का सुन्दर समावेश किया है आपने!
Jai ho Vasant!!!!
जवाब देंहटाएंसारगर्भित और सुंदर रचना , शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंbahoot sunder
जवाब देंहटाएंसुंदर वासंतिक रचना ...... बसंतोत्सव की शुभकामनायें.....
जवाब देंहटाएंमहका बसंत बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंवसंत पंचमी की ढेरो शुभकामनाए
आओ मनाये बसंत,
जवाब देंहटाएंमगन प्रकृति के संग।
बासंती कविता
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएं
अति सुंदर।
जवाब देंहटाएं---------
समाधि द्वारा सिद्ध ज्ञान।
प्रकृति की सूक्ष्म हलचलों के विशेषज्ञ पशु-पक्षी।
बसंती रंग सी फुहार है इस रचना मे। बसंतोत्सव की हार्दिक शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना...
जवाब देंहटाएंप्रकृति की पीड़ा और निस्वार्थ देन का सुन्दर सामंजस्य बया किय हे आपने.. बधाई..
Kya baat hai !! Bahut khoob !!
जवाब देंहटाएंbahut sunder rachna
जवाब देंहटाएं...
फेस बुक में भी मित्रता का स्वागत .. धन्यवाद..
जवाब देंहटाएंआज चर्चामंच पर आपकी यह सुन्दर कविता है... आप वह भी आ कर अपने विचार लिखें...आभार ..
http://charchamanch.blogspot.com
sundar kavita hai..........achhi lagi.......:)
जवाब देंहटाएंBahut sunder ......
जवाब देंहटाएंbadhai