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शुक्रवार, 20 अगस्त 2010

विचारों की चहलकदमी................

ये जो हमारा मन है ......बहुत बावरा है...........और इस मन में पनपते विचार उन्मुक्त पंछी........जो बस हर वक्त दूर गगन में उड़ना चाहते हैं .........कभी भोर की पहली किरण में.....कभी शाम की लाली में.......तो कभी रात की तन्हाई में............बस चहलकदमी करते रहते हैं .....कुछ इस तरह..............


विचारों की चहलकदमी................

आँखें बन्द करने पर
           
                ख़्वाब कहाँ आते हैं ;

विचारों की चहलकदमी में

               पल बीतते जाते है ;


नहीं रुकते उसके कदम
            
               चलते ही जाते हैं ;

नहीं होता कोई बन्धन
               
               बढ़ते ही जाते हैं ;

कभी चेहरे पर हंसी
           
               कभी रुला जाते हैं ;

लाख चाहने पर भी

               पकड़ में न आते हैं ;

सुलझाने की कोशिश में

               उलझते ही जाते हैं ;

ये ‘विचारों’ की है जुम्बिश

               जिसमें सब जकड़े जाते हैं ;

ज्यूं नदी की हर मौज में

               किनारे धंसते जाते हैं !!

                                                                                     सुमन ‘मीत’

20 टिप्‍पणियां:

  1. ये ‘विचारों’ की है जुम्बिश
    जिसमें सब जकड़े जाते हैं ;
    ज्यूं नदी की हर मौज में
    किनारे धंसते जाते हैं !!

    सुंदर कविता है
    आभार

    जवाब देंहटाएं
  2. विचारों की जुम्बिशें ..... सबकुछ उलझ जाता है , बहुत सही कहा

    जवाब देंहटाएं
  3. पता नहीं ख्वाबों में कितना बल है, अस्तित्व हिला देते हैं।

    जवाब देंहटाएं
  4. सुमन जी,
    मस्तिष्क में उठते विचारों की उथल-पुथल को
    बहुत प्रभावी शब्दों में प्रस्तुत किया है आपने...
    वाह...बधाई.

    जवाब देंहटाएं
  5. Hi..

    Man main jo bhi baaten hotin..
    wohi vicharon ko hain laatin..
    jaane anjaane man main wo..
    aakar apni paith banatin...

    Sundar Kavita...

    Deepak

    जवाब देंहटाएं
  6. bhaav puran rachna hai suman ji....

    "जब भी सुलझाना चाहा, ज़िन्दगी के सवालों को मैंने,
    हर इक सवाल में ज़िन्दगी मेरी उलझती चली गयी..."

    जवाब देंहटाएं
  7. 'मीत' सुमनजी
    नमस्कार !
    आपके दोनों ब्लॉग्स पर विचरण किया है अभी ,
    अच्छा लगा । अनेक रंग , अनेक विधाएं , सुंदर साज - सज्जा ।
    कविताएं भाव पूर्ण …
    यहां प्रस्तुत कविता भी बहुत सुंदर है।

    आखें बंद करने पर ख़्वाब कहां आते हैं …
    सच , कई बार हम जागती आंखों से भी तो सपने देख लेते हैं …
    बहुत ख़ूब !
    शुभकामनाओं सहित …


    - राजेन्द्र स्वर्णकार

    जवाब देंहटाएं
  8. वह बहुत खूब ... सच कहा है ... आँखें बंद करने पर सबसे पहले ख्वाब की जगह विचार आते हैं ... और ये विचार बस आते ही जाते हैं आते ही जाते हैं ....

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  9. aapke in vicharon ki chahalkadmi me do kadam hum bhi saath ho liye...
    achha laga...
    achhi rachna ke liye badhai sweekar karein....

    जवाब देंहटाएं
  10. बाबरा मन, शायद है भी इसीलिए, कहाँ मानता है ये । सच कहा आपने जितना हम बचना चाहते हैं इससे हम उतना ही उलझ जाते हैं । बढिया रचना लगी आपकी ।

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  11. ये ‘विचारों’ की है जुम्बिश
    जिसमें सब जकड़े जाते हैं ;
    ज्यूं नदी की हर मौज में
    किनारे धंसते जाते हैं !!

    क्या खूब कहा.वैसे भी तनाव और आपाधापी से भरे जीवन में ख्वाबों से पाला कहाँ पड़ता है.

    जवाब देंहटाएं
  12. सुमन जी ,
    ये ख्वाब ही तो हैं जो जीवन को गति देते रहते हैं ....
    ये न हों तो जीवन नीरस न हो जाये .....
    दुआ है ये ख्वाब यूँ ही चहलकदमी करते रहे .....!!

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  13. मेरे ब्लौग को फौलो करने के लिए आपका धन्यवाद.
    आपका ब्लौग 'अर्पित सुमन' अच्छा लगा. उसे रीडर में जोड़ लिया है.

    जवाब देंहटाएं
  14. सब विचारों का ही खेल तो होता है………………अच्छी लगी चहलकदमी।

    जवाब देंहटाएं
  15. bahut khub khaas kar ये ‘विचारों’ की है जुम्बिश
    जिसमें सब जकड़े जाते हैं ;
    ज्यूं नदी की हर मौज में
    किनारे धंसते जाते हैं !!

    जवाब देंहटाएं

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