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मंगलवार, 1 मई 2012

इंसान ओढ़े है नकाब
















आज चारों ओर
देखने को मिलते हैं
नकाब ओढ़े इंसान |

अक्सर 
फाईलों के ढेर में
अपने सर को छुपाए
दिखाई देते हैं जो
निर्बल असहाय से
काम के बोझ तले दबे |

पर स्वत: ही
बदल जाता है
उनका स्वरूप
ज्यूँ ही
मेज के नीचे से
सुनाई देने लगती है
उनको
हरे कागजों की सरसराहट |

तब
बदल जाता है
उनका चेहरा
और ओढ़ लेता है
इक नकाब
आँखों में
आ जाती है
एक चमक
धीरे –धीरे
खिसकने लगता है
उनके मेज पर से
फाईलों का ढेर...!!


सु-मन  

16 टिप्‍पणियां:

  1. आज की वस्तुस्थिति की रचना

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  2. सार्थक, सामयिक, सुन्दर, बधाई

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  3. हा हा, बहुत खूब, मज़ा आ गया!! :)

    जवाब देंहटाएं
  4. सब हरे काग़ज़ों की महिमा है। सारा तंत्र उसका शिकार है।

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  5. सच कहा आपने, कागजों की गतिशीलता का भेद भला कहाँ छिपा है।

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  6. कड़वी सच्चाई कों शब्द दे दिये ...
    हर कोई बस नोटों की भाषा समझना चाहता है ...

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  7. Ek behtareen satya.. naqaab aaj har insaan ke liye jaroori bhi hai kyonki asal chehre se koi pahchanta kahan hai...

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