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मंगलवार, 19 मई 2015
शबनमी मोती
....रात दर्द की शबनम से निकले कुछ हर्फ़ फलक से और आ बैठे मेरे सरहाने घुल कर अश्कों से टिमटिमाने लगे मोती की तरह जाने कितने मोती बीन कर रख लिए कोरे कागज़ पर फिर बंद कर दी किताब ज़ेहन में भींच कर | सुबह तलक - धुन्धली होती रही रात मोती ज़ेहन को चुपचाप शबनमी करते रहे !! सु-मन
सुंदर भाव ।
जवाब देंहटाएंशबनम से महकते शब्द ... नमी का एहसास करा गए ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना और भाव
जवाब देंहटाएंwww.safarhainsuhana.blogspot.in
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, रावण का ज्ञान - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंशबनम सी ही नाज़ुक एवं भीगी-भीगी सी रचना ! बहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंसुन्दर...कोमल!!
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जवाब देंहटाएंसुंदर शबनमी अल्फ़ाज़
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बहुत सुन्दर रचना ....
जवाब देंहटाएंऔर फिर वे कविता बन गए ..सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत ही खूबसूरत शब्दों और भावों का सुन्दर सम्मिश्रण।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंसाधारण मनुषी भाव से सजी इक असाधारण रचना, लेखनी को नमन
जवाब देंहटाएंबहुत ही खूबसूरत शब्दों और भावों का सुन्दर सम्मिश्रण। शानदार अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंअहसासों को थपकियों देते मखमली हर्फ़ ।
जवाब देंहटाएंशबनम भी भिगो गई.
जवाब देंहटाएंसुमन जी बहुत सुंदर भावपूर्ण प्रस्तुति.
शबनमी मोती, बहुत ही शानदार रचना। बेहद सुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंक्या बात है। बहुत ही सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंhttp://chlachitra.blogspot.in
http://cricketluverr.blogspot.in
bahut sunder kavita
जवाब देंहटाएंचुपचाप शबनमी करते रहे..............बहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंbhut hi acchi abhivyakti....
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