जीये जाते हुए जाना
व्यर्थ नहीं होता
कुछ भी
हर पल के हिस्से में
लिखा होता है कुछ
खास
चाहा या अनचाहा
आस के ढेर पर बैठ
जीए जाते हैं हम अनेक
पल
हर आने वाले पल में
तलाश करते हैं बस
ख़ुशी
भूल जाते हैं अपने
गुनाह
अपनी इच्छाओं की
चाहते हैं पूर्ति
ताउम्र देखते हैं
सपने
उम्मीद के तकिये पर
सर टिकाये
लेते जाते हैं सुख
भरी नींद
टूट जाने पर हो जाते
हैं उदास
झोली भर भर के
बटोरते हैं रतजगे
वक़्त के गुजरे
हिस्से से
नहीं होता है जुदा हमारा
आज
उम्र लिखती है हर
नया बरस लेकिन
वक़्त और तारीख याद
दिलाते हैं कुछ जीया
मन की गलियों को
टोहने लगती हैं कुछ स्मृतियाँ !!
*****
सु-मन
आज को काट फैंकना आसान नहीं होता ... जीते जी मरना होता है ...
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना !
जवाब देंहटाएंbahut sundar ...
जवाब देंहटाएंउत्तम सृजन
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, जीना सब को नहीं आता - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 25-06-2017 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2017 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
बिखरे हुए सपनो को संयोजित करते शब्द !
जवाब देंहटाएंटोह लेती स्मृतियाँ सुन्दर हैं। शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएंदिन जो पखेरू होते---पिंजरे में,मैं रख लेता
जवाब देंहटाएंकाशः?
बहुत अच्छी लगी
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी लगी
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी लगी
जवाब देंहटाएंसुंदर और भावपूर्ण...
जवाब देंहटाएंसुंदर और भावपूर्ण...
जवाब देंहटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंबीते हुए कल को भुलाना कहाँ संभव होता है...दिल को छूती बहुत भावमयी प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंbahut sunder rachna |
जवाब देंहटाएंसच में व्यर्थ कुछ भी नहीं होता. गुजरा हुआ वक़्त हमेशा यह एहसास कराता है कि जिए हुए पल की अनमोल पूँजी हमारे पास है. बेहद गहरी पोस्ट.
जवाब देंहटाएंमन-भावन रचना।
जवाब देंहटाएंआनन्द विश्वास
सच में...हमारी साँसे आज की है पर जीते हम कल में है
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