अक्सर देखती रहती
सूर्य किरणों में उपजे
छोटे सुनहरी कणों को
हाथ बढ़ा पकड़ लेती
दबा कर बंद मुट्ठी में
ले आती अपने कमरे में
खोल कर मुट्ठी
बिखेर देती सुनहरापन
:
रात, पनीली आँखों में
चाँद को भरकर
ठीक इस तरह
रख देती कमरे में
शबनमी चाँदनी
खिड़की और दरवाजे को बंद कर
गुनगुनाती कोई मनचाहा गीत
वो लड़की पगली बेहिसाब है !!
सु-मन
पगली नहीं वो प्रेम की पावन बूँद है जिसपे खिलता है नूर रौशनी बन के ...
जवाब देंहटाएंकोमल एहसासों में बुनी लाजवाब रचना ...
पागलपन का हिसाब रखे भी कौन :) अच्छी है ।
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (21-03-2017) को
जवाब देंहटाएंचक्का योगी का चले-; चर्चामंच 2608
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वो लड़की अजीब सी है. पागलपन या नादानी, सबकुछ बेहिसाब कहती है. मुट्ठी में कुछ चाँद रखती है.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना सुमन जी.....
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंनाम वही, काम वही लेकिन हमारा पता बदल गया है। आदरणीय ब्लॉगर आपका ब्लॉग हमारी ब्लॉग डायरेक्ट्री में सूचीबद्व है। यदि आपने अपने ब्लॉग पर iBlogger का सूची प्रदर्शक लगाया हुआ है कृपया उसे यहां दिए गये लिंक पर जाकर नया कोड लगा लें ताकि आप हमारे साथ जुड़ें रहे।
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