लॉकडाउन 4.0 दूसरा दिन दो दोस्त जो एक दूसरे से
कोसों दूर थे पर दिल के करीब , आज कुछ ग़मगीन थे | कोरोना अब तक लगभग एक लाख इंसानों
को संक्रमित कर चुका था और दिन -बदिन स्थिति बिगड़ती जा रही थी |
मानवी ने पिंग किया – क्या हम रोज आंकड़े ही
गिनते जायेंगे |
विवेक – हम्म
मानवी – कब तक ?
विवेक – जब तक ..
मानवी – जब तक क्या ?
विवेक – जब तक हम में से बहुत सारे ....
इस अकल्पित जवाब से घबराई मानवी – ऐसा मत कहो
विवेक – सिर्फ हम सब ही लॉकडाउन खत्म होने का
इंतजार नहीं कर रहे और कोरोना हमसे ज्यादा इंतजार कर रहा |
मानवी – शायद अब इंतजार के आलावा कोई और विकल्प
नहीं पर इंतजार की परिभाषा रोज़ बदलेगी |
विवेक चुप था , जवाब में एक इमोज़ी बस |
मानवी का मन बहुत उद्विग्न (व्याकुल) था , लिखा – ये
कब खत्म होगा ?
विवेक – जब 70% को कवर कर लेगा |
मानवी – ऐसा मत बोलो , ये सोच के दिमाग घूम गया
| अच्छा एक बात बताओ |
विवेक – हम्म
मानवी – डाक्टर बोलते इलाज संभव ही नहीं तो लोग
ठीक कैसे हो रहे फिर | दवाई से ही ना |
विवेक – Quite interesting .. एक थिओरी है कि एक इंसान से 2.5 इंसानों को पहुँचता और
जिनका immunity सिस्टम अच्छा होता वो survive कर जाते |
मानवी – तो सभी को immunity की वैक्सीन लगनी
चाहिए ना फिर सभी ठीक रहेंगे |
विवेक - रिसर्च हो रही क्या बोल सकते हम अभी |
मानवी – क्या हम बहुत से अपनों को खो देंगे |
विवेक – भविष्य के गर्भ में क्या छिपा किसे पता
|
मानवी - इसका मर्म बहुत
गहरा होगा....
विवेक - गहरा या उथला क्या फर्क पड़ता है मानवी,
कभी देखा है मौत को जिंदगी के लिए रोते हुए ।
दोनों तरफ अब बस सन्नाटा था । शायद लफ्ज़ों को
हिम्मत नहीं थी अब कीबोर्ड में उतरने की ।
लॉकडाउन 4.0 का दूसरा दिन भारी मन के साथ तीसरे दिन में प्रवेश कर रहा
था ...…!!
बहुत मार्मिक
जवाब देंहटाएंबेहद मार्मिक
जवाब देंहटाएंमार्मिक।
जवाब देंहटाएंदिल को भेद गई, खूब लिखा है आपने ...
जवाब देंहटाएंअच्छा लेख
जवाब देंहटाएंसही बात। भविष्य के गर्भ में क्या छुपा है किए मालूम।
जवाब देंहटाएं👌👌👏
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