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मंगलवार, 28 जून 2022

शब्द से ख़ामोशी तक – अनकहा मन का (२५)

 


                                  ये जीवन कढ़ाई में उबलती घनी मलाई की तरह है जिसमें हमारे सदगुण व अवगुण ( विकार, विचार, अच्छाई, बुराई, मोह, तृष्णा, विरक्ति) सब एक साथ होते हैं जो उस मलाई की मिठास को प्रतिबंधित किये रखते हैं अपने-अपने स्वरूप के कारण । लेकिन जैसे-जैसे कढ़ने पर एक दूसरे से दूर हटने लगते हैं मिठास (सदगुण) घी के रूप में अपने आप अलग होकर सुगंध के साथ ऊपर आने लगती है और अंत में अवगुणों का कड़वापन सूखे पेड़ा बन निष्क्रिय हो जाता है । इसी तरह जीवन की मिठास पाने के लिये हमें तपना पड़ता है अवगुणों का दमन करना पड़ता है ।

सु-मन 

13 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (29-06-2022) को चर्चा मंच     "सियासत में शरारत है"   (चर्चा अंक-4475)     पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'    

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  2. वाह! दर्शन सम्मत सुंदर भाव सृजन।

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  3. सही कहा। तप कर ही गुण मलाई की तरह ऊपर आते हैं। सार्थक लेख।

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  4. वाह!!!
    बहुत ही सुंदर...
    लाजवाब।

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  5. जीवन को समझने का अलग अंदाज, विचारणीय,सादर नमन 🙏

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  6. क्या बात है 👌👌👌 आज कल दार्शनिक हो रही हो

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  7. वाह , क्या बात है । दार्शनिक हो गयी हो ।।

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