जीवन राग की तान मस्तानी
समझे न ये मन अभिमानी ;
बंधता नित नव बन्धन में
करता क्रंदन फिर मन ही मन में ;
गिरता संभलता चोट खाता
बावरा मन चलता ही जाता ;
जिस्म से ये रूह के तार
कर देते जब मन को लाचार ;
होता तब इच्छाओं का अर्पण
मन पर ज्यूँ यथार्थ का पदार्पण ;
छंट जाता स्वप्निल कोहरा
दिखता जीवन का स्वरूप दोहरा ;
स्मरण है आती वो तान मस्तानी
न समझा था जिसे ये मन अभिमानी !!
..........................................
सु..मन
समझे न ये मन अभिमानी ;
बंधता नित नव बन्धन में
करता क्रंदन फिर मन ही मन में ;
गिरता संभलता चोट खाता
बावरा मन चलता ही जाता ;
जिस्म से ये रूह के तार
कर देते जब मन को लाचार ;
होता तब इच्छाओं का अर्पण
मन पर ज्यूँ यथार्थ का पदार्पण ;
छंट जाता स्वप्निल कोहरा
दिखता जीवन का स्वरूप दोहरा ;
स्मरण है आती वो तान मस्तानी
न समझा था जिसे ये मन अभिमानी !!
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सु..मन
Waah Waah Suman ji Wah !
उत्तर देंहटाएंkya khoob likha hai aapne -"Man bawra "
aapke shabdon ka sTeek chayan ban ko choo gaya.
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उत्तर देंहटाएंshabdon ka chayan ati sundar.........
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