सुप्त जागृति
जागने से गर सवेरा होता
इंसा का रूख कुछ और होता ;
सुप्त जागृति को मिलती लय
जीवन बन जाता संगीतमय ;
न रोता वो कल का रोना
सीख लेता आज में जीना ;
न सताती भविष्य की चिंता
दुख में पल पल न गिनता ;
यूं तो वो हर रोज ही जगता
अन्दर के चक्षु बन्द ही रखता ;
देखता सिर्फ भूत और भविष्य
वर्तमान का ना होता दृष्य ;
समझ को कर तालों में बन्द
इच्छाओं में हो जाता नज़रबन्द ;
ऐसे ही हर दिन होता सवेरा
भ्रम में होता खुशियों का डेरा ;
न जाना वो सूर्य का सन्देश
धूप और छाँव का समावेश !!
खूबसूरत विचारों से रची अच्छी रचना..
जवाब देंहटाएंआपकी यह रचना कुछ सोचने के लिए मजबूर तो करती है। अच्छी रचना के लिए बधाई।
जवाब देंहटाएंbahut achhi rachna
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंकलात्मक टंकण चार चाँद लगा रहा है
एक सकारात्मक भाव की रचना सुमन जी। बहुत पसन्द आयी। अचानक मुँ से निकला वाह वाह।।
जवाब देंहटाएंजो बीता कल क्या होगा कल
है इस कारण तू व्यर्थ विकल
आज अगर तू सफल बना ले
आज सफल तो जनम सफल
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
waah khoobsoorat vichaar...sundar kavita
जवाब देंहटाएंbahut sundar ....
जवाब देंहटाएंजीवन इक नदिया है जो बहती रहे वही अच्छा
जवाब देंहटाएंसादर !
जवाब देंहटाएंअदभुत |
रत्नेश
bahut khub
जवाब देंहटाएंफिर से प्रशंसनीय रचना - बधाई
bahut khub
जवाब देंहटाएंफिर से प्रशंसनीय रचना - बधाई
सच है सवेरा तो महसूस करने से होता है ... दिल में उमंग भरने से होता है ... अच्छी रचना है ..
जवाब देंहटाएंJab jaago tabhi savera.....
जवाब देंहटाएंman ki aankho ka jaran hii vastavik jagaran hai....sahi kaha aapne..sundar prastuti
जवाब देंहटाएंप्रकृति और भावनाओं का अनोखा संगम्। एक अच्छी आशावादी रचना।
जवाब देंहटाएंजागने से गर सवेरा होता.....
जवाब देंहटाएंसे लेकर...
धूप और छांओ का समावेश...
तक....
जिस प्रकार आपने भावनाओं को शब्दों में ढाला है...
वो बहुत खास बन गया है....बधाई
Dekhta sirf bhoot aur bhavishya
जवाब देंहटाएंVartmaan ka na hota drishya .
Wah !