बदलते वक्त ने
बदला हर नज़र को
काटों से भर दिया
मेरे इस चमन को
कि हर सुमन के हिस्से में
बस एक उदासी है
न समझ पाया वो फिजां को
क्यों इतना जज़्बाती है
जब जब है वो टुटा डाली से
हर सपना उसका चूर हुआ
मुरझाना ही है नसीब उसका
ये उसको महसूस हुआ
मुरझाना ही है नसीब उसका
ये उसको.....................!!
सु..मन
kafi bhavuk jajbat hai...sundar rachna..
जवाब देंहटाएंbhavuk jajbat hai...sundar rachna..
जवाब देंहटाएंAtyant bhavpurn abhivyakti.shubkamnayen.
जवाब देंहटाएंsandar bhav abhivyakti.
जवाब देंहटाएंआज शाम..कुछ उदासी है...क्या बात है?
जवाब देंहटाएंरचना के भाव गहरे हैं...
marm ke silwaton se jhankti rachna
जवाब देंहटाएंman ke bhavon se nikli ye rachna .........bahut badhiya prastuti
जवाब देंहटाएंभावुकता से पूर्ण । मनन कर बाहर निकल आइये ।
जवाब देंहटाएंनया ब्लॉग प्रारम्भ किया है, आप भी आयें । http://praveenpandeypp.blogspot.com/2010/06/blog-post_23.html
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ...
जवाब देंहटाएंभले सुमन को मुरझाना पड़े, पर वो खिलना नहीं छोडती ...
udaasi? kaisi udaasi, kahe ki udaasi? yahan to antarmann ke phul bikhre hain
जवाब देंहटाएंजितनी भी मिली ज़िंदगी महका तो था...मुरझाना तो हर एक को है फिर ऐसा क्यों महसूस हुआ?
जवाब देंहटाएंसंवेदनशील रचना
वक्त के साथ हर शै बदल जाती है।
जवाब देंहटाएं................
अपने ब्लॉग पर 8-10 विजि़टर्स हमेशा ऑनलाइन पाएँ।
संवेदन शील लिखा है .. पर ये तो नियम है समाज का ...
जवाब देंहटाएं...सुन्दर अभिव्यक्ति
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