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मंगलवार, 22 जून 2010

बदलता वक्त

                 बदलता वक्त                 

बदलते वक्त ने
                     बदला हर नज़र को
काटों से भर दिया
                     मेरे इस चमन को
कि हर सुमन के हिस्से में
                    बस एक उदासी है
न समझ पाया वो फिजां को
                  क्यों इतना जज़्बाती है
जब जब है वो टुटा डाली से
                 हर सपना उसका चूर हुआ
मुरझाना ही है नसीब उसका
                ये उसको महसूस हुआ
मुरझाना ही है नसीब उसका
                ये उसको.....................!!


                                                                                    सु..मन 

17 टिप्‍पणियां:

  1. आज शाम..कुछ उदासी है...क्या बात है?

    रचना के भाव गहरे हैं...

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  2. man ke bhavon se nikli ye rachna .........bahut badhiya prastuti

    जवाब देंहटाएं
  3. भावुकता से पूर्ण । मनन कर बाहर निकल आइये ।

    नया ब्लॉग प्रारम्भ किया है, आप भी आयें । http://praveenpandeypp.blogspot.com/2010/06/blog-post_23.html

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ...
    भले सुमन को मुरझाना पड़े, पर वो खिलना नहीं छोडती ...

    जवाब देंहटाएं
  5. आप की इस रचना को शुक्रवार, 2/7/2010 के चर्चा मंच के लिए लिया जा रहा है.

    http://charchamanch.blogspot.com

    आभार

    अनामिका

    जवाब देंहटाएं
  6. जितनी भी मिली ज़िंदगी महका तो था...मुरझाना तो हर एक को है फिर ऐसा क्यों महसूस हुआ?

    संवेदनशील रचना

    जवाब देंहटाएं
  7. संवेदन शील लिखा है .. पर ये तो नियम है समाज का ...

    जवाब देंहटाएं
  8. You have a very good blog that the main thing a lot of interesting and beautiful! hope u go for this website to increase visitor.

    जवाब देंहटाएं

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