कब
तक लूटती रहेगी
रोज
अस्मत सरे बाज़ार
कब
तक यूँ एक बेटी
रोज
बेआबरू की जायेगी |
कब
तक चुकानी है कीमत
उसको
एक लड़की होने की
कब
तक एक निर्दोष पर
यूँ
अंगुली उठाई जायेगी |
कब
तक शोषित होगी नारी
इस
सभ्य संकीर्ण समाज में
कब
तक उसके अरमानो की
यूँ
रोज चिता जलाई जायेगी |
कब
तक ..आखिर कब तक ???
सु-मन
यही जबाब मांग रहा है सारा देश...आहत हुआ...बेबस और लाचार!
जवाब देंहटाएंतश्तरी जी ..कितनी लाचारी है ...कोई जवाब नहीं मिला ..सदियों से यही होता आया है ..नारी यूँ ही शोषित होती आई है ...
हटाएं.सार्थक अभिव्यक्ति नारी महज एक शरीर नहीं
जवाब देंहटाएंशुक्रिया शालिनी
हटाएंजब तक नारी खुद अपने सम्मान के लिए स्वयं आत्मरक्षा करना शुरू नहीं करती, जब तक खुद की सुरक्षा के लिए दूसरों का सहारा लेना या दूसरों का मुंह ताकना नहीं छोड़ती तब तक यही होता आया है और यही होता रहेगा क्यूंकि महाभारत काल में तो फिर भी द्रोपदी कि लाज बचाने श्री कृष्ण आए थे मगर वो सत युग था और यह कलयुग है। यहाँ कोई नहीं आने वाला किसी के लिए जो करना है खुद करना है। वो कहते है ना,
जवाब देंहटाएंखुद ही को कर बुलंद इतना कि
खुदा बंदे से खुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है।
ठीक कहा पल्लवी ...पर अत्याचार के खिलाफ उठी आवाज को किस तरह दबा दिया जाता है ..ये आज के हालत देख कर समझा जा सकता है ....
हटाएंजब तक पलटकर करारा जवाब नहीं दिया जायेगा।
जवाब देंहटाएंआम जनता की आवाज को कैसे दबा दिया जाता है ये आप देख रहे हैं ...
हटाएंउम्मीद है अपने जीवनकाल में ही बदलाव की बयार देखूंगा. जड़ से बदलाव की जरूरत है.
जवाब देंहटाएंउम्मीद तो है पर ...हम भी इसी उम्मीद में बैठे हैं
हटाएंI wish I had the answer...But I can start with myself with a promise to respect women.
जवाब देंहटाएंAnd appreciating your painful piece....
U R right Hemant ...when every person took this kind of promise...new begining start with new thinking ...I m egerly waiting for that begining..
हटाएं..यही सब हो रहा है...लेकिन इसका अंत निश्चत है...पर कब?..सवाल अभी सवाल ही है!
जवाब देंहटाएंहांजी ..और इन सवालों का जवाब आखिर कब मिलेगा कोई निश्चित नही ...
हटाएंसुमन जी इसी कब तक का जवाब हम सब चाहते हैं क्यूंकि अब ये कब तक एक हद तक बढ़ चुका है
जवाब देंहटाएंहाँ अरुण इस हद तक बढ़ चुका है कि मानव दानव बन गया है ...
हटाएंकोई जवाब नहीं मिलेगा
जवाब देंहटाएंमुझे भी यही लगता है संगीता जी
हटाएंआँख नम है
जवाब देंहटाएंन्याय की माँग में
जुल्म देख
:((((
हटाएंअब भी जवाब का ही इंतज़ार है??????
जवाब देंहटाएंहम्म, लगता है इंतजार कभी खत्म नही होगा
हटाएंमर्म भेदती रचना।
जवाब देंहटाएंSarthak aur ek behtreen rachna ...
जवाब देंहटाएंhttp://ehsaasmere.blogspot.in/
बेहद खूबसूरती से एहसासों को शब्दों में ढाला है सुमन जी... वैसे जब तक लोगो की पितृ सत्तात्मक सोच में परिवर्तन नहीं आएगा.. हमारी बेटियों, हमारी बहनों को अपमान के घूंट पीने पड़ेंगे..
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरती से एहसासों को शब्दों में ढाला है सुमन जी,
जवाब देंहटाएंवैसे जब तक हमारे दिमागों में भरी पितृ सत्तात्मक सोच नहीं बदलती.. तब तक हमारी बहनों, हमारी बेटियों को ये दंश झेलना पड़ेगा..
♥(¯`'•.¸(¯`•*♥♥*•¯)¸.•'´¯)♥
♥♥नव वर्ष मंगलमय हो !♥♥
♥(_¸.•'´(_•*♥♥*•_)`'• .¸_)♥
कब तक शोषित होगी नारी
इस सभ्य संकीर्ण समाज में ?
अब समाज सभ्य रहा ही कहां ???
आदरणीया सुमन जी
मार्मिक कविता ...
शुभकामनाओं सहित…
राजेन्द्र स्वर्णकार
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जवाब अभी तक नहीं मिला... :((
जवाब देंहटाएंअपराधी अभी भी नहीं रुके...
जो पकड़ में हैं ... उनका भी कुछ नहीं हुआ !
इस देश का होगा क्या... पता नहीं... :(
~सादर!!!
बेह्तरीन अभिव्यक्ति!शुभकामनायें.
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