ये कैसा है ज़ेहाद
कैसा सकूँ-ए-रूह है
खाक करना अमन-ओ-वतन
किस मजहब का असूल है
ये कैसी है सरहद
कैसी मजहबी तलवार है
उजाड़ देना माँ की
कोख़
किस इबादत का यलगार
है
ये कैसा है जुनून
कैसा क़त्ल-ए-आम है
छीन लेना लख्त-ए-ज़िगर
किस अल्लाह का पैगाम
है
ये कैसा है करम..तेरा
मौला
कैसा रहमत का तूफान
है
आँगन बना उजड़ा चमन
हर घर तब्दील कब्रिस्तान
है
हर घर तब्दील
कब्रिस्तान है....!!
सु-मन
धरती के कलंक हैं ये आतंकी इनका कोई न अल्लाह है न धर्म ...
जवाब देंहटाएंkash, in aatankiyo ko pata hota ki ve kya kar rahe hai!!
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (21-12-2014) को "बिलखता बचपन...उलझते सपने" (चर्चा-1834) पर भी होगी।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंभगवान इन्हें सदबुद्धि दे
जवाब देंहटाएंइनको बनाकर खुदा भी पछता रहे होंगे !
जवाब देंहटाएं: पेशावर का काण्ड
ये सिर्फ दहशतगर्द हैं ... मानवता को शर्मसार किया है इन्होने ...
जवाब देंहटाएंदुखद और कायरता भरे इस कृत्य के लिए सुमन जी अगर सही कहा जाए तो पाकिस्तान ही है ! लेकिन विडम्बना ये वहां के सियासतदानों की कारगुजारियों का सिला वहां के बच्चों और वहां की अवाम को चुकाना पड़ रहा है !!
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति। मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंये कैसी धार्मिक अंधभक्ति है इंसानो को मरकर खुद को बचाना चाहते है। बेहतरीन।
जवाब देंहटाएंसंवेदनशील। नववर्ष की शुभकामनाओं के साथ, सादर।
जवाब देंहटाएंमार्मिक रचना, नये वर्ष की शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंउम्दा....बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंनयी पोस्ट@मेरे सपनों का भारत ऐसा भारत हो तो बेहतर हो
मुकेश की याद में@चन्दन-सा बदन
इस रचना की जितनी तारीफ की जाए कम है। आजकल जो कुछ हो रहा है। वह जेहाद नहीं है। जेहाद एक उद्धोग बन चुका है। जहां लोग पैसा पाकर कत्ल करने का काम करते हैं। पहले लादेन इस इण्डस्ट्री का बिल गेटस था। अब यह जगह बगदादी ने ले ली है।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सार्थक सृजन, बधाई
जवाब देंहटाएंBahut acha likha hai apne. Thanks for sharing.
जवाब देंहटाएंRIP our Indian soldiers souls.