बेशक कोई रिश्ता हमें जन्म से मिलता है परंतु उस रिश्ते से जुड़ाव हमारे मनोभाव पर निर्भर करता है । जन्म मरण के फेर में हम पाते हैं कि इंसानी जुड़ाव कितना आंतरिक और नैसर्गिक होता है । एक इंसान के चले जाने पर उससे जुड़े सभी इंसानों के मनोभाव पृथक होते है । ईश्वर के रचे इस संसार में बेशक हम सबकी सोच भिन्न है परंतु हम सब एक दूसरे के पूरक भी हैं ।
शायद यही जीवन है ।।
सु-मन
पिछली कड़ी : शब्द से ख़ामोशी तक – अनकहा मन का (२५)
सच बात।
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 10 अक्टूबर 2024 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
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सुन्दर
जवाब देंहटाएंभिन्नता में एकता की खोज ही तो साधना है
जवाब देंहटाएंसत्य वचन 🌺🌺
जवाब देंहटाएंसत्य वचन 👍👍
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