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बुधवार, 6 मार्च 2013

रुखसत होती जिंदगी



















रुखसत होती जिंदगी
रात की मानिन्द
और गहराती जा रही ....

मौत के साये
छू लेने को आमद
बिल्कुल वैसे
ज्यूँ एक घने जंगल में
अपनी ओर बुलाती
एक सुनसान निर्जन राह ...

सोच में हूँ – कि आखिर
जिंदगी और मौत के
इस सफर के बीच  
जाने कितने रतजगे बाकी हैं  ...!!


सु-मन 

10 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही भावपूर्ण कविता आभार.

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    --
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल गुरूवार (07-03-2013) के “कम्प्यूटर आज बीमार हो गया” (चर्चा मंच-1176) पर भी होगी!
    सूचनार्थ.. सादर!

    जवाब देंहटाएं
  3. रात जगना, स्वप्न को दिवस से मिलाने की उहापोह है।

    जवाब देंहटाएं
  4. रात की गहराई में खोयी सुन्दर रचना। बधाई।।

    जवाब देंहटाएं
  5. ये रात लेकर आएगी एक नयी सुबह...बस आँख के मुंदते ही...

    अनु

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत खूब !आपकी कविता "रुखसत होती जिंदगी" बहुत पसंद आई मुझे ,इतनी बेहतरीन कविता के लिए बधाई!!
    Matrimonial

    जवाब देंहटाएं

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