सितम्बर की इस अध ठंडी रात में
मैं देख रही हूँ –
अपने हिस्से का एक खुला आकाश
और उसमे उजला सा आधा चाँद |
आधे आँगन में पड़ती
40 वोल्ट के बल्व की मद्धम रोशनी
मेरे जिस्म को छूकर
स्पन्दन सा करती ये मस्त बयार |
पास बुलाते गहरे साये से पेड़
मुझे लग रहे मेरे हमसफ़र
सुन रहा मुझे
झींगुरों का ये मधुर संगीत |
स्वप्न सा प्रतीत होता यथार्थ
मेरी आँखों को दे रहा सकून
‘मन’ कह रहा हौले से
कुछ अनकहा कुछ अनसुना !!
सु..मन
बहुत सुंदर लिखा..
जवाब देंहटाएंशुक्रिया रश्मि जी :)
हटाएंखूबसूरत अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना की
जवाब देंहटाएंस्वप्न सा प्रतीत होता यथार्थ
मेरी आँखों को दे रहा सकून
‘मन’ कह रहा हौले से
कुछ अनकहा कुछ अनसुना !!
ये पंक्तियाँ लिंक सहित
शनिवार 28/09/2013 को
http://nayi-purani-halchal.blogspot.in
को आलोकित करेगी.... आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
लिंक में आपका स्वागत है ..........धन्यवाद!
बहुत ही अच्छी लगी मुझे रचना........शुभकामनायें ।
जवाब देंहटाएंसुबह सुबह मन प्रसन्न हुआ रचना पढ़कर !
Beautiful lines....looks like a live poetry!!
जवाब देंहटाएंखुबसूरत अभिव्यक्ति..
जवाब देंहटाएंprathamprayaas.blogspot.in-
आत्म साक्षात्कार-
badhiya.. badhaai Suman ji
जवाब देंहटाएंpyara sitambar ...........:)
जवाब देंहटाएंरात की गहराई में खोयी सुन्दर रचना। बधाई।।।
जवाब देंहटाएंचाँद सदियों से ही संवाद करता रहा है सबसे, बस अपने चालीस वॉट से सबको आकर्षित करता रहा है। बहुत अच्छी रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और भावमयी रचना...
जवाब देंहटाएंप्रकृति के सानिध्य............ बहुत सुन्दर.....
जवाब देंहटाएंइस अनकहे अनसुने में ही जीवन बात जाता है ... एहसास का केनवस बना रहता है ..,
जवाब देंहटाएंखुबसूरत अभिवयक्ति......
जवाब देंहटाएंnice.
जवाब देंहटाएं