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गुरुवार, 26 सितंबर 2013

सितम्बर की अध ठंडी रात












सितम्बर की इस अध ठंडी रात में
मैं देख रही हूँ
अपने हिस्से का एक खुला आकाश
और उसमे उजला सा आधा चाँद |

आधे आँगन में पड़ती
40 वोल्ट के बल्व की मद्धम रोशनी
मेरे जिस्म को छूकर
स्पन्दन सा करती ये मस्त बयार |

पास बुलाते गहरे साये से पेड़
मुझे लग रहे मेरे हमसफ़र
सुन रहा मुझे
झींगुरों का ये मधुर संगीत |

स्वप्न सा प्रतीत होता यथार्थ
मेरी आँखों को दे रहा सकून
मन कह रहा हौले से
कुछ अनकहा कुछ अनसुना !!



सु..मन 

21 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना की
    स्वप्न सा प्रतीत होता यथार्थ
    मेरी आँखों को दे रहा सकून
    ‘मन’ कह रहा हौले से
    कुछ अनकहा कुछ अनसुना !!
    ये पंक्तियाँ लिंक सहित
    शनिवार 28/09/2013 को
    http://nayi-purani-halchal.blogspot.in
    को आलोकित करेगी.... आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
    लिंक में आपका स्वागत है ..........धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शुक्रवार (27-09-2013) चेत यहूदी बौद्ध सिक्ख, हिन्दु क्रिस्ट इस्लाम -चर्चा मंच 1381
    में "मयंक का कोना"
    पर भी है!
    हिन्दी पखवाड़े की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत ही अच्छी लगी मुझे रचना........शुभकामनायें ।
    सुबह सुबह मन प्रसन्न हुआ रचना पढ़कर !

    जवाब देंहटाएं
  4. रात की गहराई में खोयी सुन्दर रचना। बधाई।।।

    जवाब देंहटाएं
  5. चाँद सदियों से ही संवाद करता रहा है सबसे, बस अपने चालीस वॉट से सबको आकर्षित करता रहा है। बहुत अच्छी रचना।

    जवाब देंहटाएं
  6. प्रकृति के सानिध्य............ बहुत सुन्दर.....

    जवाब देंहटाएं
  7. इस अनकहे अनसुने में ही जीवन बात जाता है ... एहसास का केनवस बना रहता है ..,

    जवाब देंहटाएं

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