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मंगलवार, 10 सितंबर 2013

वक्त की सलीब


















वक्त की सलीब पर
टांग दिए हैं वो लम्हें
गाढ़ दी है फासलों की खूंटी 

जिंदगी का एक टुकड़ा
ले रहा अब आखिरी साँसे !!



सु..मन 

27 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खूब

    पर ये पढ़ा हुआ लग रहा है ...

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    उत्तर
    1. शुक्रिया अंजू जी , आप ने fb पर पढ़ा होगा मेरी वाल पे ।

      हटाएं
  2. कुछ सांसें ही रह जाती हैं अगर सलीब पे टग जाओ तो ...
    गहरा ख्याल ...

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  3. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  4. सांसें जब टंगी हों सलीब पर...
    फिर जिंदगी.....???
    बहुत खूब...

    जवाब देंहटाएं
  5. आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति बुधवारीय चर्चा मंच पर ।।

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. हिंदी लेखक मंच पर आप को सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपके लिए यह हिंदी लेखक मंच तैयार है। हम आपका सह्य दिल से स्वागत करते है। कृपया आप भी पधारें, आपका योगदान हमारे लिए "अमोल" होगा |

    दोस्तो की भीड़ मे भी एक दोस्त की तलाश है मुझे
    अपनो की भीड़ मे भी एक अपने की प्यास है मुझे,
    छोड आता है हर कोइ समन्दर के बीच मुझे,
    अब डूब रहा हूँ तो एक साहिल की तलाश है मुझे,
    लडना और जीतना चाहता हूँ इन अन्धेरो के गमो से,
    अब तो बस एक शमा के उजाले की तलाश है मुझे,
    अपनी हर ज़िन्दगी में तंग आ चुका हूँ इस बेवक्त की मौत से मै,
    अब अपनी इस ज़िन्दगी में एक हसीन ज़िन्द्गी की तलाश है मुझे,
    क्या पागल और दीवाना हूँ मै, सब यही कह कर सताते है मुझे,
    अब तो बस जो मुझे समझ सके, उस दोस्त की तलाश है मुझे !!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. ब्लॉग जगत में आपकी पहल के लिए शुभकामनाएं |

      हटाएं
    2. yu to waqt ki bisaat pr aksr hi kahania kisse mil jaya krte h,
      pr aap jaiso k chnd nishan hi dur dil tak jaya krte h.....:)

      हटाएं
  7. उत्तर
    1. हाँजी प्रकाश जी ... हम अक्सर टुकड़ों में ही जीते हैं , पूरी जिन्दगी मिलती कहाँ है जीने के लिए |

      हटाएं
  8. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन पैटर्न टैंकों को बर्बाद करने वाले परमवीर को सलाम - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

    जवाब देंहटाएं
  9. कई-कई हिस्सों में जी जाती है जिन्दगी ......हाँ ऐसा ही होता है ....................

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  10. कितने तकलीफदेह होते हैं वे आखरी पल .....जब मौत भी मूंह चिढ़ाती है ...

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  11. बहुत गहन और सुन्दर अभिव्यक्ति...

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  12. ☆★☆★☆

    ज़िंदगी का एक हिस्सा
    ले रहा है आख़िरी सांसें...

    मार्मिक कविता है आदरणीया सुमन जी
    प्रभावशाली प्रस्तुति !

    सुंदर रचना के लिए साधुवाद
    आपकी लेखनी से सदैव सुंदर श्रेष्ठ सार्थक सृजन हो , यही कामना है...

    मंगलकामनाओं सहित...
    -राजेन्द्र स्वर्णकार

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