इक पड़ाव पर ठहर कर
अपनी सोच को कर जुदा
सिमट एक दायरे में
करती स्व का विसर्जन
चलती है एक अलग डगर
उम्र पार की वो औरत |
देह के पिंजर में कैद
उम्र को पल-पल संभालती
वक्त के दर्पण की दरार से
निहारती अपने दो अक्स
ढूंढती है उसमे अपना वजूद
उम्र पार की वो औरत |
नियति के चक्रवात में
बह जाते जब मांग टीका
कलाई से लेते हैं रुखसत
कुछ रंग बिरंगे ख्वाब
दिखती है एक जिन्दा लाश
उम्र पार की वो औरत |
नए रिश्तों की चकाचौंध में
उपेक्षित हो अपने अंश से
बन जाती एक मेहमान
खुद अपने ही आशियाने में
तकती है मौत की राह
उम्र पार की वो औरत !!
सु..मन
बहुत ही बेहतरीन ! अत्यंत सशक्त एवँ धारदार रचना ! बधाई स्वीकार करें सुमन जी !
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया साधना जी
हटाएंउम्र पार की औरत जब अपने हिस्से की ख़ामोशी को कुछ और बढ़ा लेती है
जवाब देंहटाएंस्वीकार लेती है कफ़न सामाजिक बोलियों का
तब वह - न जिंदा होती है,न मरती है - नहीं कर पाती अपना अग्नि संस्कार
रह जाती ही उम्र की गिरफ्त में भटकती
सही कहा रश्मि जी और इस भटकन में वो जिन्दा लाश बन कर रह जाती है ।
हटाएंबहुत खूब लिखा सु-मन
जवाब देंहटाएंमन से शुक्रिया :)
हटाएंवाह जी
जवाब देंहटाएंधन्यवाद जी
हटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (19-10-2013) "शरदपूर्णिमा आ गयी" (चर्चा मंचःअंक-1403) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
शुक्रिया शास्त्री जी .. हर बार की तरह इस बार भी मेरी रचना को पाठकों से रूबरू करवाने के लिए आभार ।
हटाएंबहुत सुन्दर और मर्मस्पर्शी रचना....
जवाब देंहटाएंपसंद करने के लिए शुक्रिया कैलाश जी
हटाएंभावपूर्ण रचना |
जवाब देंहटाएंमेरी नई रचना:- "झारखण्ड की सैर"
शुक्रिया प्रदीप जी
हटाएंउम्र पार की औरत -- बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति -मर्मस्पर्शी
जवाब देंहटाएंlatest post महिषासुर बध (भाग २ )
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन कुछ खास है हम सभी में - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंbahut sundar....mere blog par aap sabhi ka swagat hai
जवाब देंहटाएंअगर तेरी नज़र है कातिल, तो शिकार हम होंगे,
अगर तेरा बदन है संगमरमर, तो खरीदार हम होंगे,
अगर तू है कोई शहज़ादी, तो पहरेदार हम होंगे,
अगर तेरी मोहब्बत मे है धोखा,तो तेरा प्यार हम होंगे.
to read all shayri click here
http://iwillrocknow.blogspot.in/2013/10/blog-post_19.html
:))
हटाएंबहुत ही बेहतरीन। हर उम्रपार की औरत को अपना अक्स दिखाई देता है इसमें।
जवाब देंहटाएंहाँजी आशा जी ..सही कहा आपने ।
हटाएंवाह बहुत खूबसूरत रचना .....सच को बयाँ करती हुई
जवाब देंहटाएंशुक्रिया अंजू जी
हटाएंनारी जीवन की विभिन्न परिस्थितियों को बाखूबी लिखा है ...
जवाब देंहटाएंहकीकत के करीब ...
मन में जीवित जीवन रहता,
जवाब देंहटाएंभोले सा एक बच्चा रहता।
Waah Suman.....
जवाब देंहटाएंBadi gahrai hai aapki rachna mein
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