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मंगलवार, 22 अक्तूबर 2013

करवाचौथ ..करवे बिन











(माँ की नज़र से पूज्य बाबू जी को समर्पित )

जानती हूँ
तुम अब नहीं हो
न ही रची है
मेरे हाथों में
तेरे नाम की मेहंदी
सुर्ख लाल चूड़ियों की खनक
जुदा है अब मेरे वजूद से
चाँद सा टीका
अब दूर छिटक गया है
झिलमिल सितारों वाली चुनरी
रंगरेज़ ने कर दी है
स्याह काली
नहीं सजाऊँगी मैं अब
करवे की थाल ।

पर ..सुनो !
रात, जब
चाँद निकलेगा ना
तुम उसकी खिड़की से झांकना
मैं मन के दर्पण में
देख लूंगी तुम्हारा अक्स
हाँ ,नहीं कर पाऊँगी
मंगल कामना
तुम्हारी लम्बी उम्र की
कि अब तुम देह बंधन से परे
जा उस लोक में
कर रहे मेरा इंतजार
और इस देह बंधन में बंधी
मैं कर रही तुमको नमन !!



सु..मन

16 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही भावपूर्ण प्रस्तुति है .
    यहाँ भी पधारे.
    http://iwillrocknow.blogspot.in/

    जवाब देंहटाएं
  2. पर ..सुनो !
    रात, जब
    चाँद निकलेगा ना
    तुम उसकी खिड़की से झांकना
    मैं मन के दर्पण में
    देख लूंगी तुम्हारा अक्स
    हाँ ,नहीं कर पाऊँगी
    मंगल कामना
    तुम्हारी लम्बी उम्र की
    कि अब तुम देह बंधन से परे
    जा उस लोक में
    कर रहे मेरा इंतजार
    और इस देह बंधन में बंधी
    मैं कर रही तुमको नमन !!--------

    आंखे नम हो गयी
    भावुक,मार्मिक
    गहन अनुभूति की रचना
    सादर

    आग्रह है---
    करवा चौथ का चाँद ------

    जवाब देंहटाएं
  3. पुरुष द्वारा करवे का व्रत रखने की परम्परा क्यों नहीं है?

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुन्दर मर्मस्पर्शी रचना...

    जवाब देंहटाएं
  5. भाव पूर्ण ..... समर्पण का भाव भी अद्भुत होता है ।

    जवाब देंहटाएं
  6. :-(
    प्रेम का एक रूप ऐसा भी...............

    अनु

    जवाब देंहटाएं

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