गूंजने लगे हैं
फिर वही सन्नाटे
जिन्हें छोड़ आए थे
दूर कहीं ... बहुत दूर
तकने लगी हैं
फिर वही राहें
जो छूट गई थी
पीछे ... बहुत पीछे |
ख़याल मन में नहीं बसते अब
बस इसे छूकर निकल जाते हैं
‘बावरा मन’ समझ गया है
ख़याल मेहमान है
आये, आकर चले गए
हकीकत साथी है
चलेगी दूर तलक |
ये दो नयन भी नहीं छलकते अब
सेहरा बन गए हैं शायद
जिनमें उग आए हैं
कुछ यादों के कैक्टस
जिनके काँटों की चुभन से
कभी निकल आते हैं
अश्क के कतरे
जज़्ब हों जाते हैं
लबों तक आते आते |
घर में भी इंसान नहीं रहते अब
बस घूमती हैं चलती फिरती लाशें
नहीं पकती चूल्हे पर रोटी
खाली बर्तन को सेंकते
लकड़ी के अधजले टुकड़े
बिखेरते रहते हैं धुआं
तर कर देते हैं
ये शुष्क आँखें |
कुछ इस तरह
जिंदगी को मिल जाती है
टुकड़ों –
टुकड़ों में
जीने के लिए
जिजीविषा !!
सु..मन
शानदार भावाव्यक्ति!!
जवाब देंहटाएंशुक्रिया तश्तरी जी
हटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज रविवार को (24-11-2013) बुझ ना जाए आशाओं की डिभरी ........चर्चामंच के 1440 अंक में "मयंक का कोना" पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत बहुत आभार शास्त्री जी
हटाएंमन की गहराइयों से शांत उभरे एहसास
जवाब देंहटाएंहांजी रश्मि जी ...मन के एहसास
हटाएंb hut ache vichaar.
जवाब देंहटाएंVinnie
शुक्रिया विनी जी
हटाएंबहुत खूब ... ये जिजीविषा जरूरी है सांस लेने के लिए ...
जवाब देंहटाएंजी ,सही कहा आपने
हटाएंसुमन उम्दा भाव उकेरे हैं ………बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंशुक्रिया वंदना दी ... बस आप सबका प्यार है ।
हटाएंमीत ने
जवाब देंहटाएंना देखा, ना दी कोई आवाज़ ही मुड़कर,
हम
आज भी इंतज़ार मैं नज़रें गड़ाए बैठे हैं,
जैसे
राह के हाशिये पर एक मील का पत्थर ।
-पुलस्त्य
बहुत खूब पुलस्त्य जी :)
हटाएंवाह!..कितना सुन्दर कहा है..
जवाब देंहटाएंशुक्रिया अमृता जी
हटाएंटुकड़ों-टुकड़ों में मिली यही जिजीविषा शायद हर इंसान की नियति है ! बहुत ही सुंदर एवँ सशक्त भावाभिव्यक्ति ! बहुत खूब !
जवाब देंहटाएंहांजी साधना जी , सही कहा आपने ..शुक्रिया
हटाएंवाह..!!! सुमन जी बहुत ही सुन्दर लिखा है ....लाजवाब....
जवाब देंहटाएंThnx Ashish ...gud to see u here :)
हटाएंbahut achha likhti hain aap.
जवाब देंहटाएंजी, एकदम..एकदम
जवाब देंहटाएंटुकड़ा..टुकड़ा तनहा-तनहा
जिजीविषा ओह..जिजीविषा
सुंदर रचना...
जवाब देंहटाएंजितनी भी मिले, जैसी भी मिले, जिजीविषा नित भरती रहे।
जवाब देंहटाएंbehtreen rachna
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