@सर्वाधिकार सुरक्षित

सर्वाधिकार सुरक्षित @इस ब्लॉग पर प्रकाशित हर रचना के अधिकार लेखक के पास सुरक्षित हैं |

रविवार, 12 जनवरी 2014

माँ सुनो !
















(बेटी दिवस पर)

माँ सुनो !

जब पहली बार 
किया था महसूस 
अपने गर्भ में 
मेरा वजूद 
तो बताओ ना 
मेरी धड़कन में 
किसे जिया था तुमने 
एक बेटा या बेटी ।

जब कभी 
अकेले में बैठ 
करती थी मुझसे बात 
क्या कुछ पनपता था 
तुम्हारे भीतर 
एक बेटी की चाह
या बेटे का सपना ।

जब पहली बार 
गूँजी मेरी किलकारी 
लिया था अपने हाथों में 
तुम्हारी सोच की हकीकत को 
बताओ ना 
कैसे स्वीकारा था तुमने ।
.
.
.
तुम मौन हो माँ 
जानती हूँ तुम्हारी चुप्पी 
इतने बरस 
बेटी के वजूद को 
महसूस करती आई हूँ 
तुमसे होकर गुजरती 
तय कर रही हूँ 
तुम्हारे गर्भ से इस घर तक सफ़र !!

तुम्हारी बेटी


सु..मन

19 टिप्‍पणियां:

  1. माँ ने तो बस एक स्पंदन जिया था.. और अब भी जीती है..
    बेहद सधा हुआ पोस्ट..

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज रविवार (12-01-2014) को वो 18 किमी का सफर...रविवारीय चर्चा मंच....चर्चा अंक:1490
    में "मयंक का कोना"
    पर भी है!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं
  3. bohat sundar Suman. .. your ma is going to be very proud of you. my regards

    जवाब देंहटाएं
  4. माँ और बेटी के स्पंदन से ओत प्रोत रचना .... बहुत सुंदर

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. शुक्रिया वर्मा जी , बहुत दिनों बाद आपकी दस्तक हुई | अच्छा लगा |

      हटाएं
  5. बहुत ही सुन्दर रचना कि प्रस्तुति,आभार आपका।

    जवाब देंहटाएं
  6. जरुर ललित जी , शुक्रिया रचना पसंद करने के लिए |

    जवाब देंहटाएं
  7. ये प्रश्न हा बेटी का है और हर माँ मौन...सुंदर रचना...

    जवाब देंहटाएं
  8. बेटी की तरह जी हुयी माँ, बेटी का मन समझती है।

    जवाब देंहटाएं

www.hamarivani.com
CG Blog www.blogvarta.com blogavli
CG Blog iBlogger