मन !
जानते हो, तुम कौन हो ?
शायद नहीं और शायद ही मैं कभी परिभाषित कर पाऊं तुम्हें | जब कभी कोशिश की तुम्हें
पाने की ..तुम्हें जानने की ...तुम खो गए ..अनभिज्ञ बन गए और जब कभी तुमसे दूर
जाना चाहा ..तुम ख़ामोश साये की तरह साथ चलते रहे | मैं अक्सर तुमसे पूछती ,
तुम्हारे होने का सबब और जवाब में एक ख़ामोशी के सिवा कुछ नहीं मिलता | शब्दों को
टटोलते हुए जब कभी मेरी ख़ामोशी धीरे – धीरे तुम्हारी ख़ामोशी में उतरती...कुछ शेष
नहीं बचता ...जानते हो उस एक क्षण में एक वर्तुल मेरी रूह को घेर शब्द और ख़ामोशी
के हर दायरे को पार कर जो रचता ..मुझे तुम्हारे होने का एहसास देता .... मुझे
मुझसे मिला देता ....मुझे जीना सीखा देता | शब्द से ख़ामोशी तक के इस सफ़र की
निर्वात यात्रा के मेरे एकल साथी मुझे यूँ ही अपनी पनाह में रखना !!
ये जो तेरे मेरे बीच
की बात है ... बेवजह है शायद ...कुछ बेवजह बातें हर वजह से परे होती हैं... है ना
‘मन’ !!
सु-मन
पिछली कड़ी : शब्द से ख़ामोशी तक – अनकहा मन का
सुंदर शुरुआत ।
जवाब देंहटाएंVery nice. Simplicity in the form of creativity.
जवाब देंहटाएंअच्छी शुरुआत .... असीम शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंअच्छी शुरुआत बहुत अच्छे भाव
जवाब देंहटाएंखूबसूरत अनकहा जिसे कहा गया |
जवाब देंहटाएंसच कहा...या तो सब कुछ बेवजह सा लगता है या एक परिगूढ़ रहस्य.
जवाब देंहटाएंशुरुआत बेहद अच्छी है लेकिन जैसे जैसे आपकी बात आगे बढ़ेगी तभी मर्म समझ आएगा !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर मन को छूते अहसास...इंतजार अगली कड़ी का..
जवाब देंहटाएंकिसी के मन की थाह कभी कोई नहीं ले सकता है ..हाँ अपने मन को नियंत्रित करना जरुरी हैं सुकून के लिए ..
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया
कल 23/नवंबर/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !
बहुत कुछ बेवजह होते हुए भी कितनी वजहें रखता है ...
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूब...
जवाब देंहटाएंबेहद सुन्दर गहन भाव जो अपने साथ अंतर की गहराई तक ले जाते हैं और छोड़ देते हैं ऐसे निर्जन प्रदेश में जहाँ कल्पना की उंगली थाम आगे बढ़ने के लिये रास्ते ही रास्ते हैं ! बहुत सुन्दर लिखा है सुमन जी ! आभार !
जवाब देंहटाएं"कुछ बेवजह बाते हर वजह से परे होती है " सही कहा है !
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंशानदार प्रस्तुति
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