आज सोम वार था | राखी को अब सिर्फ
एक हफ्ता ही रह गया था आज से ठीक सात दिन बाद सोमवार को राखी थी | बातों ही बातों
में रिया ने अनुज को बोला – मैं आपको राखी भेजूं ? पहनोगे ...फिर चुप हो गई |
...सॉरी
अनुज - अरे सॉरी क्यूँ
रिया – बस ऐसे ही बाधुंगी ..कोई रिश्ता नहीं थोपूंगी | आप जीजू होने के साथ साथ मेरे
दोस्त भी हो ना .. सो आई जस्ट शेयर माई थॉट
अनुज- बिलकुल पहनूंगा और रिश्ता भी मानूंगा | इसमें थोपने जैसा कुछ नहीं । रियु का अधिकार है यह तो ।
रिया - सच्ची ! उसके होठों पे प्यारी मुस्कान थी | फिर बोली
- कोई पूछेगा फिर ?
अनुज - तो बता दूंगा | इसमें छुपाने जैसा क्या |
रिया - नहीं , नहीं भेजूंगी ..नहीं तो आप फिर बोलोगे मैं तो जीजू हूँ
तुम्हारा | अब जीजू क्यूँ बोला ...पापू क्यूँ बोला ..दोस्त क्यूँ बोला |
अनुज – ये बात तो है | तुम्हारी दीदी बोलेगी पहले मेरी बहन अब आपकी हा हा
रिया उदासी भरे लहजे में - रहने दो | मैं भी फिजूल ही बोलती
हूँ | रिया की आँखों में अब खारे बादल घिर आये थे |
अनुज - अरे नहीं । अब तो रियु मेरी दीदी है । खूब तंग करूंगा अपनी दीदी को |
मैं आपसे बड़ी थोड़े हूँ जो आप मुझे दीदी बोलोगे , रिया ने
बोला |
अरे ! तो क्या हुआ, तुम भी तो कभी कभी मुझे छोटे बच्चे जैसा
डांटती हो तो मैं छोटा थोड़े ना हूँ तुमसे, अनुज ने रिया को हंसाने के लिए उसी के
लहजे में कहा |
अब तो मैं जरूर बांधूंगा । एक डोरी अपने से । वो डोरी नहीं रियु का स्नेह होगा । इत्ता जो सोचता हो मेरे बारे में उसकी बात तो पक्का मानना है मुझे
यू मेक मी क्राई पापू - रिया कि आवाज़ में नमी थी |
बस मन में बात आई सो कह दी | आप जानते हो ना रिश्तों को लेकर मेरी सोच थोड़ी अलग
है | मेरे लिए रक्षा बंधन मतलब रक्षा के लिए बांधी जाने वाली डोरी | वो डोरी आप
किसी को भी बांध सकते हो जिसे आप अपना मानते हो |
अनुज - अरे रियु , मैं भी यही सोच रहा कि रियु मुझे रक्षा कवच बांधना चाह रही |
रिया - आप समझ गए थे न मेरी फीलिंग जीजू |
अनुज - तुम बिलकुल वैसे ही सोचती हो जैसा मैं सोचता हूँ । तुम्हारा मन है मुझे डोरी बाँधने का । मैं स्वयं बांधूंगा पर यक़ीन मानो ऐसा ही महसूस होगा मुझे जैसे रियु बांध रहा हो ।
रिया – हूँ ! आप मन हो तो बांध लेना | मैं कुछ ज्यादा ही
बोलती हूँ ना
अनुज - नहीं ज्यादा नहीं एकदम साफ बोलते हो रियु तुम ...जो मन भीतर वही बाहर । जो सच्चा होता है दिल का वही ऐसे बोल पाता है ।
रिया - पता नी | पर सबको पसंद नही आती
अनुज - मैंने तो इस बार डोरी बांधनी ही बांधनी है । सच किसे और कब पसंद आया है ।
रिया - मैं आपको तंग करती हूँ ना
अनुज - अच्छा लगता है
रिया - जैसी डोरी मैं बोलूंगी ..वैसी डालोगे ना
अनुज - और क्या । पिक भेजो उसे देख ले लूँगा
रिया - हूँ और जब पहनोगे तो सबसे पहले मैं आपका बेटू देखेगा
अनुज - पक्का
रिया - थंक्यु ..मैं पागल हूँ ना
अनुज - गल तो सोणी करती हो ,
पागल का नहीं पता
रिया - फादर डे पर पापू बना देती हूँ ..राखी पर भाई ..
फ्रेंडशिप डे पर दोस्त ...वैसे जीजू तो आप हो ही मेरे .. पागल ही हुई ना
अनुज - हा हा
रिया - हर एक इस तरह का बिहेवियर नहीं समझ पाते ना ..जैसा मेरा है |
अनुज - जो दिल करे मान लो । तुम्हारा जीजू
तुम्हारा दोस्त भी है | अच्छे और सच्चे दोस्त आपस में ऐसे ही होते हैं । सब रिश्ते बनते भी है और निभते भी हैं ।
रिया - आप समझते हो ना
अनुज - लगता तो है
रिया - पर सभी नहीं समझते
अनुज - कोई नहीं । सोचो ही मत
रिया - मुझे नहीं पता मैं , मेरी जिंदगी में जो रिश्ते
मैंने खुद बनाये हैं या जो रिश्ते मुझे जन्म से मिले हैं उन्हें ता-उम्र सही तरीके
से निभा पाऊँगी या नहीं पर अपने आज में उन सभी रिश्तों को अच्छे से निभाना चाहती
हूँ |
अनुज - तुम इत्ता अच्छा सोचती हो रियु
रिया - जो खुद अच्छे होते हैं उन्हें सब अच्छे लगते है जीजू
अनुज - तुम्हारी बातों से तुम्हारे मन और मस्तिष्क का हाल मिलता है मुझे एकदम साफ़ साफ
रियु - हा हा , अच्छा ! क्या हाल मिलता है
अनुज - कि तुम चाह कर भी बुरी नहीं हो सकती ...!!
फ़ोन कट चूका था | रियु गूगल पर अपने जीजू के लिए डोरी की
तस्वीरें देखने लगी, उसकी आँखों के खारे बादल अब छंटने लगे थे...!!
सु-मन
बहुत अच्छी कहानी लिखी है आपने सुमन जी।
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रयास !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और भावपूर्ण कहानी...
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (26-08-2015) को "कहीं गुम है कोहिनूर जैसा प्याज" (चर्चा अंक-2079) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
अच्छी है ।
जवाब देंहटाएंसंवेदनशील लिखती हैं आप ... जारी रखें ...
जवाब देंहटाएंस्नेह का बंधन हैं राखी
जवाब देंहटाएंमर्मस्पर्शी प्रस्तुति
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, आर्थिक संकट का सच... ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंरिश्ते डोर से कब बंधे हैं । डोर तो एक प्रतीक मात्र है स्नेह और कटिबद्धता का । कहानी कम और यथार्थ अधिक है इस कहानी में । बधाई आपको इस नए प्रयास के लिए ।
जवाब देंहटाएंक्या खूब लिखा है..!! लाजवाब..!!!
जवाब देंहटाएंअद्भुत अहसास...सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुन्दर ......
जवाब देंहटाएंwritten nice and pristine....wonderful thoughts ...awaiting for next ones!!!
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