वो लड़की
सफ़र में
जाने से पहले
बतियाती है
आँगन में खिले
फूल पत्तों से
देती है उन्हें हिदायत
हमेशा खिले रहने की
रोज़ छत पर
दाना चुगने आई
चिड़िया को
दे जाती है
यूँ ही हर रोज़
आते रहने का न्योता
चाहती है वो
माँ का घर हरा – भरा
.
.
घर से निकलते वक़्त
टेकती है सर
घर की देहड़ी पर
बिना पीछे मुड़े
बढ़ा देती है कदम आगे
हर जरूरी सामान
छोड़ जाती है
पीछे ही घर में
एक छोटी डायरी में
लिख जाती है
सारा हिसाब किताब
माँ को दे जाती है
जल्दी लौट आने का
झूठा दिलासा
वो लड़की अंतिम सफ़र पर है !!
सु-मन
maa ka ghar ... bahut samvedansheel rchnaye dono ...
जवाब देंहटाएंमार्मिक ! बेहद संवेदनशील। आखिरी पंक्ति ने विचलित कर दिया।
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (28-12-2016) को "छोटी सोच वालों का एक बड़ा गिरोह" (चर्चामंच 2570) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (28-12-2016) को "छोटी सोच वालों का एक बड़ा गिरोह" (चर्चामंच 2570) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
लगता है ठहराव आ गया है
जवाब देंहटाएंया फिर मंजिल का
कोई पता पा गया है
लड़की का अंतिम सफर है
और
शायद जिंदगी का नया ।
जीवन को नैराश्य से उबारना ज़रूरी है. जीवन के विभिन्न आयाम दर्शाती पंक्तियाँ अंत में विचलित करती हैं. उम्मीद है इससे आगे के सफ़र पर भी लिखा जायगा.
जवाब देंहटाएंकोई सफ़र अन्तिम नही होता................. एक मंज़िल के बाद दुसरा रास्ता होता हैं
जवाब देंहटाएंhttp://savanxxx.blogspot.in
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जवाब देंहटाएंसंवेदनशील पंक्तियां...
जवाब देंहटाएंबहुत हृदयस्पर्शी रचना।
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना
जवाब देंहटाएंसफर अंतिम क्यों?