@सर्वाधिकार सुरक्षित

सर्वाधिकार सुरक्षित @इस ब्लॉग पर प्रकाशित हर रचना के अधिकार लेखक के पास सुरक्षित हैं |

रविवार, 29 नवंबर 2020

मन तुम 'बुद्ध' हो जाना









मन !
जीवन के धरातल पर
उग आयें जब
अभीप्साओं के बीज
आँखों को तर करने लगे
दो बूँद अश्क़
वर्ष दर वर्ष मिटने लगे
उम्र की स्याही
रिश्तों की घनी छाँव भी
देह को तपाने लगे

सुनो मन -
ठीक इसके पहले
तुम निबंधित हो
ले चलना मुझे
देह से परे की डगर
अकंपित, निर्विघ्न
समाहित कर खुद में
मेरा सारा स्वरूप
मन तुम 'बुद्ध' हो जाना !!


सु-मन

9 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 29 नवंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  2. वाह!! सुमन जी! 'सु' मन से लिखी सार्थक रचना 👌👌👌सस्नेह शुभकामनायें 🙏🙏

    जवाब देंहटाएं
  3. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुंदर सृजन मन तुम बुद्ध हो जाना।
    निबंधन से पहले या फिर निबंधन से मुक्त ही तो बुद्ध होना है।
    सुंदर आध्यात्मिक रचना।

    जवाब देंहटाएं
  5. बुद्धम शरणम् गच्छामि । सुंदरतम ।

    जवाब देंहटाएं
  6. आपके ब्लॉग पर आ कर प्रसन्नता हुई। बहुत अच्छा लिखती हैं आप ।
    हार्दिक शुभकामनाएं 🍁🙏🍁

    जवाब देंहटाएं

www.hamarivani.com
CG Blog www.blogvarta.com blogavli
CG Blog iBlogger