जीवन के धरातल पर
उग आयें जब
अभीप्साओं के बीज
आँखों को तर करने लगे
दो बूँद अश्क़
वर्ष दर वर्ष मिटने लगे
उम्र की स्याही
रिश्तों की घनी छाँव भी
देह को तपाने लगे
सुनो मन -
ठीक इसके पहले
तुम निबंधित हो
ले चलना मुझे
देह से परे की डगर
अकंपित, निर्विघ्न
समाहित कर खुद में
मेरा सारा स्वरूप
मन तुम 'बुद्ध' हो जाना !!
सु-मन
अभीप्साओं के बीज
आँखों को तर करने लगे
दो बूँद अश्क़
वर्ष दर वर्ष मिटने लगे
उम्र की स्याही
रिश्तों की घनी छाँव भी
देह को तपाने लगे
सुनो मन -
ठीक इसके पहले
तुम निबंधित हो
ले चलना मुझे
देह से परे की डगर
अकंपित, निर्विघ्न
समाहित कर खुद में
मेरा सारा स्वरूप
मन तुम 'बुद्ध' हो जाना !!
सु-मन
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 29 नवंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंवाह!! सुमन जी! 'सु' मन से लिखी सार्थक रचना 👌👌👌सस्नेह शुभकामनायें 🙏🙏
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सृजन मन तुम बुद्ध हो जाना।
जवाब देंहटाएंनिबंधन से पहले या फिर निबंधन से मुक्त ही तो बुद्ध होना है।
सुंदर आध्यात्मिक रचना।
बुद्धम शरणम् गच्छामि । सुंदरतम ।
जवाब देंहटाएंआपके ब्लॉग पर आ कर प्रसन्नता हुई। बहुत अच्छा लिखती हैं आप ।
जवाब देंहटाएंहार्दिक शुभकामनाएं 🍁🙏🍁