कुछ क़तरे हैं ये जिन्दगी के.....जो जाने अनजाने.....बरबस ही टपकते रहते हैं.....मेरे मन के आँगन में......
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गुरुवार, 15 अगस्त 2019
शनिवार, 3 अगस्त 2019
'मन' खुशी मुबारक !
मन !
खुशी मुबारक |
1st अगस्त को iblogger द्वारा आयोजित Blogger of the Year 2019 Contest के परिणाम की घोषणा की गई और Top 10 blogger of the year में अपना नाम दिखा तो मन खुश हो गया | सोचा आप सब से अपनी खुशी साझा कर लूँ , उन पाठकों से जिन्होंने मेरे लेखन को सराहा.. मेरे लफ्ज़ों को गति दी |
विजेता , उपविजेता और सभी विजेताओं को शुभकामनाएं ....
निर्णायक मण्डल और पाठकों का तहे दिल से शुक्रिया ..
और
मन ! मेरे हर लफ्ज़ , विचार और अभिव्यक्ति के रचयिता ..तुझे प्यार भरी झप्पी :-)
सु-मन
सोमवार, 22 जुलाई 2019
सोमवार, 24 जून 2019
यादें कभी बंजर नहीं होती
इस दफ़ा शब्दों के मानी बदल गए
नहीं उतरे कागज़ पर , तकल्लुफ़ करते रहे
वक़्त के हाशिये पर देता रहा दस्तक
अनचिन्हा कोई प्रश्न, उत्तर की तलाश में
कागज़ फड़फड़ाता रहा देर तक
बाद उसके, थोड़ा फट कर चुप हो गया
आठ पहरों में बँटकर चूर हुआ दिन
टोहता अपना ही कुछ हिस्सा वजूद की तलाश में
एक सिरकटी याद का ज़िस्म जलता रहा
सोच के दावानल में धुआँ धुआँ
जिंदगी दूर बैठ उसे ताकती रही, अपलक
सुलगती रही बिन आग, याद के साथ साथ !!
दरअसल -
वक़्त दिन तारीख नहीं होते एक दूसरे से जुदा
शब्द ढूँढ ही लेते रास्ता कागज़ पर उतरने का
यादें कभी बंजर नहीं होती जिंदगी के रेगिस्तान में !!
सु-मन
सोमवार, 13 मई 2019
बुधवार, 1 मई 2019
बर्ग-ए-चिनार
तुम्हारे दरख़्त से
रख दिया है सहेज के
अपनी नज़्मों के पास
बहुत ख़्वाहिश थी
बिताऊँ चन्द लम्हें
तुम्हारे आगोश में
डल के किनारे बैठ
करूँ हर शाख से बातें
महसूस करूँ तुम्हारा वजूद
उतार लूँ तुमको मन के दर्पण में
ये सोच-
ले आई तुम्हें अपने साथ
कि मेरी हर नज़्म अब बर्ग-ए-चिनार होगी ।।
सु-मन
#कश्मीर डायरी
बुधवार, 20 मार्च 2019
गुरुवार, 21 फ़रवरी 2019
मातृभाषा
जीवन में फिर होता सृजन
सृजन से उपजता है ज्ञान
ज्ञान से परिभाषित हो विज्ञान
विज्ञान से बदलता परिवेश
परिवेश बनाता प्रगतिशील देश
देश की होती अपनी परिभाषा
परिभाषा में अहम होती भाषा
भाषा जिसमें लगी है बिंदी
बिंदी की सुर्खी से सजी हिंदी
हिंदी प्रिय भारत की मातृभाषा
मातृभाषा वंदन हमारी अभिलाषा !!
अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस की शुभकामनाएँ |
सु-मन
शुक्रवार, 15 फ़रवरी 2019
रविवार, 30 दिसंबर 2018
जब आता है दिसम्बर

लम्बी सर्द रात में
ऊँघता है चाँद तन्हा
जर्द पत्तों को संभाले
ओढ़ लेते है दरख्त
सफेद चादर
जब आता है दिसम्बर....
धूप की मिन्नतें करते
नज़र आते हैं सुबह
ओस के मेहमान
क्यारी के बेफूल पौधे
होते हैं कुछ उदास
जब आता है दिसम्बर....
मक्की की रोटी
चूल्हे पर है पकती
क्या खूब होता जायका
सरसों के साग का
मक्खन चुपड़ के
खिलाती है माँ
जब आता है दिसम्बर....
बीते ग्यारह मास
करता हर कोई याद
क्या खोया और पाया
होता ये एहसास
बीती को बिसार कर
बढ़ता नव वर्ष की ओर
जब आता है दिसम्बर.... !!
सु-मन
#बारह_मास_नवम्बर
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