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मंगलवार, 10 सितंबर 2013

वक्त की सलीब


















वक्त की सलीब पर
टांग दिए हैं वो लम्हें
गाढ़ दी है फासलों की खूंटी 

जिंदगी का एक टुकड़ा
ले रहा अब आखिरी साँसे !!



सु..मन 

23 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खूब

    पर ये पढ़ा हुआ लग रहा है ...

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    उत्तर
    1. शुक्रिया अंजू जी , आप ने fb पर पढ़ा होगा मेरी वाल पे ।

      हटाएं
  2. कुछ सांसें ही रह जाती हैं अगर सलीब पे टग जाओ तो ...
    गहरा ख्याल ...

    जवाब देंहटाएं
  3. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  4. सांसें जब टंगी हों सलीब पर...
    फिर जिंदगी.....???
    बहुत खूब...

    जवाब देंहटाएं
  5. उत्तर
    1. हाँजी प्रकाश जी ... हम अक्सर टुकड़ों में ही जीते हैं , पूरी जिन्दगी मिलती कहाँ है जीने के लिए |

      हटाएं
  6. ब्लॉग जगत में आपकी पहल के लिए शुभकामनाएं |

    जवाब देंहटाएं
  7. कई-कई हिस्सों में जी जाती है जिन्दगी ......हाँ ऐसा ही होता है ....................

    जवाब देंहटाएं
  8. कितने तकलीफदेह होते हैं वे आखरी पल .....जब मौत भी मूंह चिढ़ाती है ...

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  9. बहुत गहन और सुन्दर अभिव्यक्ति...

    जवाब देंहटाएं
  10. yu to waqt ki bisaat pr aksr hi kahania kisse mil jaya krte h,
    pr aap jaiso k chnd nishan hi dur dil tak jaya krte h.....:)

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  11. ☆★☆★☆

    ज़िंदगी का एक हिस्सा
    ले रहा है आख़िरी सांसें...

    मार्मिक कविता है आदरणीया सुमन जी
    प्रभावशाली प्रस्तुति !

    सुंदर रचना के लिए साधुवाद
    आपकी लेखनी से सदैव सुंदर श्रेष्ठ सार्थक सृजन हो , यही कामना है...

    मंगलकामनाओं सहित...
    -राजेन्द्र स्वर्णकार

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