कुछ क़तरे हैं ये जिन्दगी के.....जो जाने अनजाने.....बरबस ही टपकते रहते हैं.....मेरे मन के आँगन में......
Pages
@सर्वाधिकार सुरक्षित
सर्वाधिकार सुरक्षित @इस ब्लॉग पर प्रकाशित हर रचना के अधिकार लेखक के पास सुरक्षित हैं |
सोमवार, 2 जून 2014
रविवार, 13 अप्रैल 2014
जीना भर शेष ...
जीने के लिए
खाया भी पीया भी
भोगा भी खोया भी
किये अनेक तप चाहा मनचाहा फल
बजती रही मंदिर की घंटियाँ
जलता रहा आस्था की डोर का दीपक
मरने से पहले बुझी नहीं आस की लौ |
बीच सफ़र
डगमगाए कदम बहुत बार
बढ़ा भी रुका भी
गिरा भी संभला भी
बीने कंकर चल दिया राह पर अनथक
चलती रही आंधियाँ
बरसे बहुत गम के बादल
राह का धुंधलका घुलता रहा मंजिल पाने तक |
हर पल हर घड़ी
आती जाती रही बेआवाज़ साँसें
धड़का भी थमा भी
जीया भी मरा भी
मुखरित हुआ मौन बढ़ती रही जिंदगी
बदलते रहे पहर
लिखी जाती रही इबारत वक़्त के पन्ने पर
होती रही भोर काली रात बीत जाने के बाद |
******
(अब तक जो जीया हाथ की लकीरों में था ...लकीरों में थी जिंदगी ....जिंदगी में बहुत कुछ था पर कुछ भी नहीं ....उस कुछ की तलाश में है अभी जीना भर शेष ...मेरे लिए !!)
सु..मन
शनिवार, 15 मार्च 2014
प्रेम रंग
सुनो !
होली आने वाली है
और
तुमने पूछा है मुझसे
मेरा प्रिय रंग
चाहते हो रंगना मुझे
उस रंग से ...
जानते हो !
कौन सा रंग प्रिय है मुझे
वो रंग जो कभी ना छूटे
रहे संग मेरे हमेशा
जो ज़िस्म ही नहीं
रंग दे मेरी रूह को भी ...
तो सुनो !
यूँ करो न लाओ कोई रंग
बस अपनी आँखों में
देखने दो मुझे मेरी छवि
सुनने दो तुम्हारी धड़कन का साज़
मन की बाँसुरी पर बजाओ
मेरे लिए एक नव गीत
कि राधा बन रंग जाऊँ
तुम्हारे रंग में
लाल, पीला, हरा, गुलाबी
समाहित हैं जिसमें सब रंग
प्रेम रंग.. प्रेम रंग... प्रेम रंग !!
** जय राधे कृष्णा **
सु..मन
सभी को होली की शुभकामनायें
शुक्रवार, 7 मार्च 2014
वक्त की तासीर
दिन गरम है अब
और रातें ठण्डी
सुना है -
सूरज को लग गया है
मुहब्बत का रोग
सुलगने लगा है दिन भर
शाम की माँग में
टपकने लगा है
उमस का सिन्धूर
आसमां रहने लगा है ख़ामोश
रात कहरा कर
ढक लेती है
ओस का आँचल
चाँद भटकता है तन्हा रातभर
****************
बदल रहा है मौसम शायद
वक्त के बयार की तासीर बदल रही है !!
सु-मन
बुधवार, 29 जनवरी 2014
बता मन मेरे..गीत लिखूँ कौन सा !
शब्द सारे खो गए
छा गया है मौन सा
अब तू बता मन मेरे
गीत लिखूँ कौन सा ।
शब्द सागर है भरा
साहिल है बेचैन सा
अब तू बता मन मेरे
मोती चुनूँ कौन सा ।
ज्वलंत हैं अभिलाषाएँ
अस्तित्व है गौण सा
अब तू बता मन मेरे
रास्ता बढूँ कौन सा ।
नेह हृदय है बह रहा
माझी है निष्प्राण सा
अब तू बता मन मेरे
पतवार ढूँढू कौन सा ।
अब तू बता मन मेरे
गीत लिखूँ कौन सा ....!!
सु..मन
रविवार, 12 जनवरी 2014
माँ सुनो !
(बेटी दिवस पर)
माँ सुनो !
जब पहली बार
किया था महसूस
अपने गर्भ में
मेरा वजूद
तो बताओ ना
मेरी धड़कन में
किसे जिया था तुमने
एक बेटा या बेटी ।
जब कभी
अकेले में बैठ
करती थी मुझसे बात
क्या कुछ पनपता था
तुम्हारे भीतर
एक बेटी की चाह
या बेटे का सपना ।
जब पहली बार
गूँजी मेरी किलकारी
लिया था अपने हाथों में
तुम्हारी सोच की हकीकत को
बताओ ना
कैसे स्वीकारा था तुमने ।
.
.
.
तुम मौन हो माँ
जानती हूँ तुम्हारी चुप्पी
इतने बरस
बेटी के वजूद को
महसूस करती आई हूँ
तुमसे होकर गुजरती
तय कर रही हूँ
तुम्हारे गर्भ से इस घर तक सफ़र !!
तुम्हारी बेटी
सु..मन
शनिवार, 23 नवंबर 2013
जिजीविषा
गूंजने लगे हैं
फिर वही सन्नाटे
जिन्हें छोड़ आए थे
दूर कहीं ... बहुत दूर
तकने लगी हैं
फिर वही राहें
जो छूट गई थी
पीछे ... बहुत पीछे |
ख़याल मन में नहीं बसते अब
बस इसे छूकर निकल जाते हैं
‘बावरा मन’ समझ गया है
ख़याल मेहमान है
आये, आकर चले गए
हकीकत साथी है
चलेगी दूर तलक |
ये दो नयन भी नहीं छलकते अब
सेहरा बन गए हैं शायद
जिनमें उग आए हैं
कुछ यादों के कैक्टस
जिनके काँटों की चुभन से
कभी निकल आते हैं
अश्क के कतरे
जज़्ब हों जाते हैं
लबों तक आते आते |
घर में भी इंसान नहीं रहते अब
बस घूमती हैं चलती फिरती लाशें
नहीं पकती चूल्हे पर रोटी
खाली बर्तन को सेंकते
लकड़ी के अधजले टुकड़े
बिखेरते रहते हैं धुआं
तर कर देते हैं
ये शुष्क आँखें |
कुछ इस तरह
जिंदगी को मिल जाती है
टुकड़ों –
टुकड़ों में
जीने के लिए
जिजीविषा !!
सु..मन
रविवार, 3 नवंबर 2013
जल रहे हैं दीपक
जल रहे हैं दीपक
सबके आँगन
चल रहे हैं
पटाखे फुलझडियाँ
सज रहे हैं द्वार
लक्ष्मी के स्वागत में ...
ये देखते हुए
जलाया है किसी ने
पिछले बरस खरीदा
अधटूटा सा दीपक
घर के द्वार पर
तुम्हारे लिए .....
रखी है उसने
अपने हिस्से की
एक पूरी कुछ हलवा
मिला है जो उसको
आज सुबह
एक मंदिर के बाहर
भीख के कटोरे में .....
सोच में हूँ
क्या आओगी तुम
उस द्वार
या जलेगा वो दीपक
फिर तन्हा
यूँ ही अगले बरस...... !!
सु..मन
(हे माँ ! सभी की झोली खुशियों से भर दो ...सभी को दीपावली की मंगलकामनाएं ...)
मंगलवार, 22 अक्टूबर 2013
करवाचौथ ..करवे बिन
(माँ की नज़र से पूज्य बाबू जी को समर्पित )
जानती हूँ
तुम अब नहीं हो
न ही रची है
मेरे हाथों में
तेरे नाम की मेहंदी
सुर्ख लाल चूड़ियों की खनक
जुदा है अब मेरे वजूद से
चाँद सा टीका
अब दूर छिटक गया है
झिलमिल सितारों वाली चुनरी
रंगरेज़ ने कर दी है
स्याह काली
नहीं सजाऊँगी मैं अब
करवे की थाल ।
पर ..सुनो !
रात, जब
चाँद निकलेगा ना
तुम उसकी खिड़की से झांकना
मैं मन के दर्पण में
देख लूंगी तुम्हारा अक्स
हाँ ,नहीं कर पाऊँगी
मंगल कामना
तुम्हारी लम्बी उम्र की
कि अब तुम देह बंधन से परे
जा उस लोक में
कर रहे मेरा इंतजार
और इस देह बंधन में बंधी
मैं कर रही तुमको नमन !!
सु..मन
तुम अब नहीं हो
न ही रची है
मेरे हाथों में
तेरे नाम की मेहंदी
सुर्ख लाल चूड़ियों की खनक
जुदा है अब मेरे वजूद से
चाँद सा टीका
अब दूर छिटक गया है
झिलमिल सितारों वाली चुनरी
रंगरेज़ ने कर दी है
स्याह काली
नहीं सजाऊँगी मैं अब
करवे की थाल ।
पर ..सुनो !
रात, जब
चाँद निकलेगा ना
तुम उसकी खिड़की से झांकना
मैं मन के दर्पण में
देख लूंगी तुम्हारा अक्स
हाँ ,नहीं कर पाऊँगी
मंगल कामना
तुम्हारी लम्बी उम्र की
कि अब तुम देह बंधन से परे
जा उस लोक में
कर रहे मेरा इंतजार
और इस देह बंधन में बंधी
मैं कर रही तुमको नमन !!
सु..मन
शुक्रवार, 18 अक्टूबर 2013
उम्र पार की वो औरत
इक पड़ाव पर ठहर कर
अपनी सोच को कर जुदा
सिमट एक दायरे में
करती स्व का विसर्जन
चलती है एक अलग डगर
उम्र पार की वो औरत |
देह के पिंजर में कैद
उम्र को पल-पल संभालती
वक्त के दर्पण की दरार से
निहारती अपने दो अक्स
ढूंढती है उसमे अपना वजूद
उम्र पार की वो औरत |
नियति के चक्रवात में
बह जाते जब मांग टीका
कलाई से लेते हैं रुखसत
कुछ रंग बिरंगे ख्वाब
दिखती है एक जिन्दा लाश
उम्र पार की वो औरत |
नए रिश्तों की चकाचौंध में
उपेक्षित हो अपने अंश से
बन जाती एक मेहमान
खुद अपने ही आशियाने में
तकती है मौत की राह
उम्र पार की वो औरत !!
सु..मन
सदस्यता लें
संदेश (Atom)