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मंगलवार, 19 जनवरी 2010

कभी-कभी सोचती हूँ...........

जाने क्या है जाने क्या नहीं

बहुत है मगर फिर भी कुछ नहीं

तुम हो मै हूँ और ये धरा

फिर भी जी है भरा भरा

कभी जो सोचूँ तो ये पाऊँ

मन है बावरा कैसे समझाऊ

कि न मैं हूँ न हो तुम

बस कुछ है तन्हा सा गुम.......................!!

सु..मन 
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