तुम्हें बदलना होगा !
जीवन की राहें
बहुत हैं पथरीली
तुम्हें गिर कर
फिर संभलना होगा ।
भ्रम की बाहें
बहुत हैं हठीली
छोड़ बन्धनों को
कुछ कर गुजरना होगा ।
दुनिया की निगाहें
बहुत हैं नुकीली
तुम्हें बचकर
आगे बढ़ना होगा ।
रिश्तों की हवाएँ
बहुत हैं जकड़ीली
छोड़ तृष्णा को
मुक्त हो जाना होगा ।
ऐ ‘मन’
तुम्हें बदलना होगा
बदलना होगा
बदलना होगा !!
...सुमन ‘मीत’...