बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं…....... इस अवसर पर मेरी एक पुरानी कविता डाल रही हूँ ।आशा करती हूँ आप सबको पसन्द आयेगी.....
शाम ढल आई
मेघ की गहराई
नीर बन आई
आसमा की तन्हाई
न किसे भी नज़र आई ;
रातभर ऐसे बरसे मेघ
सींचा हर कोना व खेत
न जाना कोई ये भेद
किसने खेला है ये खेल ;
प्रभात में खिला उजला रूप
धुंध से निकली किरणों मे धूप
खेत में महका बसंत भरपूर
अम्बर आसमानी दिखा मगरूर ;
पंछियों से उड़े मतवाले पतंग
डोर को थामे मन मस्त मलंग
मुग्ध हूँ देख “प्रकृति के रंग”
कैसे भीगी रात की तरंग
ले आई है रश्मि की उमंग !!
........................................ सु..मन