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सोमवार, 15 मार्च 2010

हसरत-ए-मंजिल

हसरत-ए-मंजिल












न मैं बदला
न तुम बदली
न ही बदली
हसरत-ए-मंजिल
फिर क्यूं कहते हैं सभी
कि बदला सा सब नज़र आता है
शमा छुपा देती है
शब-ए-गम के
अंधियारे को
वो समझते हैं
कि हम चिरागों के नशेमन में जिया करते हैं ...............!!


सु..मन 
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