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गुरुवार, 29 जून 2017

हे निराकार !











हे निराकार !

तू ही प्रमाण , तू ही शाख
तू ही निर्वाण , तू ही राख

तू ही बरकत , तू ही जमाल
तू ही रहमत , तू ही मलाल

तू ही रहबर , तू ही प्रकाश
तू ही तरुबर , तू ही आकाश

तू ही जीवन , तू ही आस
तू ही सु-मन , तू ही विश्वास !!

*******
मन में विश्वास है और विश्वास में तुम
मेरे आकारित परिवेश के तुम एकमात्र प्रहरी हो ।

सु-मन

शनिवार, 24 जून 2017

हे ईश्वर !












कर्मों के फल का
उपासनाओं के तेज़ का
दुख के भोगों का
सुख की चाहों का
मन के विश्वास का
ईश्वर की आराधना का
अपनों के साथ का
रिश्तों के जुड़ाव का
निश्छल प्रार्थनाओं का
होता ही होगा कोई मोल ..
*
*
शरीर की नश्वरता का
जन्म मरण के खेल का
विधि के विधान का
विपदा के निदान का
श्वास की गति का
जिंदगी की मोहलत का
नहीं होता है कोई तोल...

हे ईश्वर !
ये जीवन तेरे पूर्वाग्रह में समर्पित हो !!


सु-मन 

मंगलवार, 6 जून 2017

शब्द से ख़ामोशी तक – अनकहा मन का (१०)

एक कहानी होती है । जिसमें खूब पात्र होते हैं । एक निश्चित समय में दो पात्रों के बीच वार्तालाप होता है । दो पात्र कोई भी वो दो होतें हैं जो कथानक के हिसाब से तय होते हैं । कथानक कौन लिखता है... उन किसी को नहीं मालूम । मालूम है तो बस इतना कि उस लिखे को मिटाया नहीं जा सकता । प्रतिपल लिखे को आत्मसात कर कहानी को आगे बढ़ाते जाते हैं । इस कहानी में मध्यांतर भी नहीं होता कि कोई सोचे जो पीछे घटित हुआ उसके अनुसार आगे क्या घटित होगा । बस होता जाता है, सब एक सुव्यवस्थित तरीके से । कहानी कभी खत्म नहीं होती । हाँ बस पात्र बदलते रहते हैं ।

वार्तालाप खत्म होने पर भी पात्र इकहरा नहीं होता , जाने क्यूँ ...
दोहरापन हमेशा लचीला होता है शायद इसलिए !!


सु-मन

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