मैंने एक चाह भर की
कि आज रात तुम ना
निकलो
मैं खुली खिड़की से
निहारूं राह
पर तुम ना आओ
अजीब सी शै है
तुम्हारी चाहना
एक अनबुझ प्यास |
बाहर बारिश की
बूंदों ने
कुछ आस बंधाई है
आज रात तुम
बादलों के पीछे छिप
जाना
धुल जाये जब सुबह
तलक
कलंक का ठीका
मेरी खिड़की तले
बिखेर देना तुम हल्की
चाँदनी |
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कलंक चौथ एक आस्था
...गणेश चतुर्थी एक
उत्सव ..सब मन का फेर है...तुम्हारी चाहना इससे इतर कुछ भी नहीं !!
सु-मन