कुछ क़तरे हैं ये जिन्दगी के.....जो जाने अनजाने.....बरबस ही टपकते रहते हैं.....मेरे मन के आँगन में......
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मंगलवार, 19 मई 2015
शुक्रवार, 8 मई 2015
हाँ मैं नास्तिक हूँ
हाँ मैं नास्तिक हूँ
नहीं बजाती
रोज़ मंदिरों की घंटियाँ
ना ही जलाती हूँ
आस का दीपक
नहीं देती
ईश्वर को दुखों की दुहाई
ना ही करती हूँ
क्षणिक सुखों की कामना
नहीं चढ़ाती
जल फूल फल मेवा
ना ही जपती हूँ
आस्था के मनके की माला |
हाँ, मैं दूर बैठ
मांगती हूँ
मांगती हूँ
अपने कर्मों को भोगने की शक्ति
जीए जा सकने वाली सहनशीलता
अपने कर्तव्यों के निर्वहन की क्षमता
सुख दुख को आत्मसात करने का संबल
मृत्यु का अभिनन्दन करने का साहस |
हाँ मैं नास्तिक हूँ
हाँ मैं नास्तिक हूँ !!
सु-मन
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