सितम्बर की इस अध ठंडी रात में
मैं देख रही हूँ –
अपने हिस्से का एक खुला आकाश
और उसमे उजला सा आधा चाँद |
आधे आँगन में पड़ती
40 वोल्ट के बल्व की मद्धम रोशनी
मेरे जिस्म को छूकर
स्पन्दन सा करती ये मस्त बयार |
पास बुलाते गहरे साये से पेड़
मुझे लग रहे मेरे हमसफ़र
सुन रहा मुझे
झींगुरों का ये मधुर संगीत |
स्वप्न सा प्रतीत होता यथार्थ
मेरी आँखों को दे रहा सकून
‘मन’ कह रहा हौले से
कुछ अनकहा कुछ अनसुना !!
सु..मन