कौन ? अंदर से आवाज़
आई |
मैं \ बाहर से उत्तर
आया |
मैं !! मैं कौन ?
जिंदगी .... , उसने
जवाब दिया |
अच्छा ! किसकी ? \
अंदर से सवाल |
तुम्हारी \ भूल गई
मुझे ... | इसी बीच मन के अधखुले दरवाजे को लांघ कर उसने भीतर प्रवेश कर लिया |
मैं कभी किसी को
नहीं भूलती \ पर अकसर खुद को भूला देती हूँ दूसरों के लिए |
हाँ , मैं जानती हूँ
\ उसने कहा
कैसे ?
तुम्हारी जी हुई
जिंदगी हूँ ना , तुम्हें अच्छे से जानती हूँ | वो मुस्कराई |
ओह !! आज क्या जानने
आई हो | सवालों की तल्खी उदासी को खुद-ब-खुद बयाँ कर रही थी |
देखने आई हूँ कि तुम
ठीक हो या नहीं |
क्यूँ ? मुझे क्या
हुआ है |
ये तो सिर्फ तुम्हें
और मुझे मालूम है |
हम्म |
फिर आज रात फिर से
नहीं सोई होगी |
हाँ नहीं सोई \ तो ?
जवाब में सवाल की गूँज थी |
मुझे याद करती रही
ना \ सोचती रही हर उस पल के बारे में जिसमें हर साँस मौत से लड़ी थी तुम | भूल
क्यूँ नहीं जाती तुम ?
क्यूँ हर साल ये दिन
याद रखती हो ? जिंदगी बोले जा रही थी |
कैसे भूल जाऊं \
बोलो , कैसे भूल जाऊं | इस दिन का हर पल मेरे आँखों के सामने घूम रहा | जिंदगी और
मौत लड़ाई में जीया वो वक्त भूल जाऊं ? अंतर्मन फूट पड़ा |
उसे याद करके भी तो
उदास हो जाती हो तुम \ जिंदगी बोली |
तो तुम क्यूँ बार
बार मेरे मन में दस्तक देती हो \ तुम तो बीती जिंदगी हो ना \ जी लिया है तुमको ,
तुम्हारा काम खत्म \ तो क्यूँ बार बार मुझे तंग करती हो |
तुम बुलाती हो मुझे
\ जिंदगी बोली
मैं????
हाँ ! तुम....
सुनो ! इस दिन जिंदगी
और मौत की लड़ाई जीत कर तुम्हें नई जिंदगी मिली \ मौत की उस लड़ाई में तुमने जो सहन किया वो
तुम्हारी हिम्मत थी \ इस दिन को याद रखो ईश्वर को शुक्रिया करने के लिए कि तुमको
नई जिंदगी मिली |
मैं तो बीती जिंदगी
हूँ किसी भी कमजोर पल इंसान के मन के दरवाजे पर दस्तक दे देती हूँ | पर याद रखना कोई
भी दुख मन के गहरेपन से गहरा नहीं होता और हर सुख ताउम्र सकून नहीं देता | वर्तमान
में जीना सीखो \ इससे तुम भी खुश रहोगी और मैं भी |
अच्छा ! तुम कैसे ?
क्यूँ ? मुझे ब्रेक
नहीं चाहिए क्या ?
हर साल इस दिन मुझे
उदास होकर बुला लेती हो \ इतना डिस्टर्ब करती हो मुझे | जिंदगी बोली |
ओके \ अब नहीं
करूँगी
पक्का ??
हम्म ||
तो मैंने जाऊँ ?
हूँ जाओ |
अगली साल तो नहीं
बुलाओगी ?
हाँ !!
क्याssss \ जिंदगी पीछे मुड़कर बोली |
ईश्वर का शुक्रिया
करने के लिए – उसने उत्तर दिया |
वर्तमान में जीने के लिए खुशनुमा पल छोड़कर बीती जिंदगी मुस्कराहट
के साथ मन के दरवाजे के पार निकल गई |
सु-मन
( इस लघु कहानी में
पात्र को परिभाषित न करना ही उचित लगा सो नहीं किया | शायद ये हर इंसान के अंदर
छिपा पात्र है शायद इसलिए )