बढ़ते क़दमों को
रोकने के प्रयास में
गिरती उठती वो
कब तक संभाल पायेगी
हाथों से गिरते
पलों को
आस में बंधे
खाबों को
कैसे सहेज पाएगी
आँखों से गिरती
उम्मीदों को
धूल में उड़ती
यादों को
ये रास्ता ‘अनदेखी
मंजिल’ का
उसे न जाने
कहाँ ले जायेगा
क़दमों के निशां रह जायेगें
कारवां बढ़ता जायेगा !!
सु-मन