सुबह और रात के बीच बाट जोहता एक खाली दिन ... इतना खाली कि बहुत कुछ समा लेने के बावजूद भी खाली .... कितने लम्हें ..कितने अहसास ...फिर भी खाली ... सूरज की तपिश से भी अतृप्त .. बस बीत जाना चाहता है | तलाश रहा कुछ ठहराव .. जहाँ कुछ पल ठहर सके ...अपने खालीपन को भर सके ।
ठहराव जरुरी है नव सृजन के लिए ...
इसलिए ऐ शाम !
रख रही हूँ एक और दिन तेरी दहलीज़ पर !!
रख रही हूँ एक और दिन तेरी दहलीज़ पर !!
सु-मन
पिछली कड़ी : शब्द से ख़ामोशी तक – अनकहा मन का (भाग-१०)