....रात दर्द की शबनम से निकले कुछ हर्फ़ फलक से और आ बैठे मेरे सरहाने घुल कर अश्कों से टिमटिमाने लगे मोती की तरह जाने कितने मोती बीन कर रख लिए कोरे कागज़ पर फिर बंद कर दी किताब ज़ेहन में भींच कर | सुबह तलक - धुन्धली होती रही रात मोती ज़ेहन को चुपचाप शबनमी करते रहे !! सु-मन